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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-६ और आप तय करके ही चलें कि आज मैं जागा हुआ ही चलूंगा तब आपको पता चलेगा कि निद्रा कितनी गहरी है और निद्रा का क्या मतलब है। आप एक सेकेंड एक दो कदम उठा पाएंगे कि फिसल जाएगा दिमाग, चलने की क्रिया से हट जाएगा, और कहीं चला जाएगा। फिर आपको ख्याल माएगा कि मैं फिर सो गया; जागना तो भूल गया था; चलना तो भूल गया था। क्षण भर को भी पूरी तरह जाग कर चलना मुश्किल है क्योंकि नींद बहुत गहरी है लेकिन हमें नींद का पता नहीं चलता क्योंकि हमें जागने का कोई पता ही नहीं है । तो तुलना नहीं है हमारे पास कि हम किसको जागना और सोना कहते हैं। एक आदमी ऐसा पैदा हो जो रात न सो सके, उसे कभी पता नहीं चलेगा कि वह जिस हालत में है, वह जागी हुई हालत है। इस सोए और जागने में उसे फर्क तभी हो सकता है जब वह दूसरी स्थिति को भी समझ ले। जब महावीर जैसे लोग कह रहे हैं कि हम सोए हुए जी रहे हैं तो हमारी समझ में नहीं पड़ती बात । क्योंकि जागकर जीने का क्षण भर का अनुभव भी हमें नहीं है। तुलना कहां से हो, कैसे हो? कहां तोलें ? इसका थोड़ा सा प्रयास करें। एक क्षण को भी अगर जागकर चल लेंगे दो कदम तो आप पाएंगे कि बिल्कुल हो अलग चित्त की दशा है। लेकिन क्षण भर में खो जाते हैं और नींद फिर पकर लेतो है जेसे बादल जरा सो देर को हटते हैं और सूरज दिख भी नहीं पड़ता कि फिर घिर जाते हैं । और नींद का हमारा लम्बा अभ्यास है, और अकारण नहीं है नींद का अभ्यास । कारण है उसमें कारण है उसमें । पहला कारण तो यह है कि सोए हुए जीना बड़ा सुविधापूर्ण है। इसलिए सुविधापूर्ण जीने में-क्या हो रहा है, क्या नहीं हो रहा है, क्या कर रहे हैं, क्या नहीं कर रहे है-इसकी कोई विभेदक रेखा नहीं खिचती। जगे हए व्यक्ति को फोरन विभेदक रेखा खड़ी हो जाती है कि यह करने जैसा है, यह न करने जैसा है। और फिर जो न करने जैसा है उसे करने में वह एकदम असमर्थ हो जाता है। और जिसे हम जिन्दगी कह रहे हैं, उसमें निन्यानवे प्रतिशत ऐसा है जो न करने जैसा है ! जिसे हम सोए रहें तो ही कर सकते हैं, जागें तो नहीं कर सकते। और जो जागता जाता है, वह नहीं कर पाता है। भीतर कहीं भय भी है कि जैसे हम हैं उसमें कहीं से आमूल उपद्रव न हो जाए । इसलिए सोए हुए चलना हो ठीक मालूम पड़ता है। दूसरी बात है कि सोए हुए लोगों के साथ सोए हुए होने में ही सरसता पड़ती है। चारों तरफ लोग सोए हुए हों और एक आदमो जाग जाए तो आप नहीं समझ सकते कि इसकी कठिनाई कैसी होगी?
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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