________________
प्रश्नोत्तर - प्रवचन- ६
१७३
निद्रा में हम बहुत से काम करते हैं । लेकिन जागे हुए भी किसी सूक्ष्म निद्रा में हम जीते हैं, इसे महावीर ने प्रमाद कहा है । जागे हुए भी, होश से भरे हुए भी हमारे भीतर एक धीमी सी तन्त्रा का जाल फैला हुआ है । जैसे एक आदमी ने आपको धक्का दिया है और आप क्रोध से भर गए हैं । कभी आपने सोचा कि यह क्रोध आपने जानकर किया है या कि हो गया है । जैसे बिजली का बटन दबाएँ तो पंखा चल पड़ता है । हम पंखा को नहीं कह सकते कि पंखा चल रहा है। पंखा सिर्फ चलाया गया है । और एक आदमी ने आपको धक्का दिया फिर आपके भीतर क्रोध चल पड़ा। हम यह नहीं कह सकते हैं कि आपने क्रोध किया है । हम इतना ही कह सकते हैं कि बटन किसी ने दबाया और क्रोध चल पड़ा। आप भी नहीं कह सकते कि मैं क्रोध कर रहा हूँ क्योंकि जो आदमी यह कह सकता है कि मैं. क्रोध कर रहा हूँ उस आदमी को कभी क्रोध करना सम्भव नहीं है । क्योंकि अगर वह मालिक है तो करेगा ही नहीं । अगर मालिक नहीं है तो ही कर सकता है ।
हमारी सारी जीवन क्रिया सोई-सोई है । हम सब नींद में चल रहे हैं । इसे महावीर ने कहा है प्रमाद । यह है मूर्च्छा । और साधना एक ही है कि कैसे हम क्रिया मात्र में जागे हुए हो जाएं ? क्योंकि जैसे ही हम जागेंगे वैसे ही चेतना का रूपान्तरण शुरू हो जाएगा। आपने कभी ख्याल किया कि रात जब आप सोते हैं तब आपकी चेतना बिल्कुल दूसरी हो जाती है। वही नहीं रहती जो जागने में थी । सुबह जब आप जागते हैं तो चेतना वही नहीं रहती जो जागने में थी । सुबह जब आप जागते हैं तो चेतना वही नहीं रहती जो सोने में थी । चेतना मूल रूप से दूसरे तलों पर पहुँच जाती है। जो आपने कभी सोचा नहीं था वह आप कर सकते हैं रात में। जो आप कल्पना नहीं कर सकते थे कि पिता को मार डालूं, वह आप रात में हत्या कर सकते हैं । और जरा भी दहशत नहीं होगी मन को । दिन में जो भो आप थे, जो आपके सम्बन्ध थे, वे सब खो गए निद्रा में । एक धनो वैसा ही साधारण हो गया है निद्रा में जैसा एक दरिद्र भिखमंगा सड़क पर सोया हो ।
●
एक फकीर था । उसके गांव का सम्राट् एक दिन उसके पास से निकल रहा था । सम्राट् ने उससे पूछा कि हममें तुममें क्या फर्क है ? फर्क तो निश्चित है । तुम भिखारी हो एक गाँव के सड़क पर मोख मांगने वाले आदमी ने कहा, फर्क जरूर है लेकिन जहाँ तक जागने का सोने के बाद हममें तुममें कोई फर्क नहीं। क्योंकि सोने के
।
मैं सम्राट् हूँ । उस
सम्बध है वहीं तक । बाद न तुम्हें ख्याल