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________________ प्रश्न : यदि जो कुछ महावीर ने पिछले जन्म में प्राप्त किया था, उससे विश्व के सभी तलों को लाभ हो, इसलिए अभिव्यक्ति के माध्यमों की सोज उन्होंने इस जन्म में की तो फिर उनके पिछले जन्मों की साधना क्या थी जिससे उनके बन्धन कट कर उन्हें सत्य की उपलब्धि हो सकी ? उत्तर : इस सम्बन्ध में सबसे पहली बात यह समझ लेनी जरूरी है कि तप या संयम से बन्धनों को समाप्ति नहीं होती; बन्धन नहीं कटते । तप और संयम कुरूप बन्धनों की जगह सुन्दर बन्धनों का निर्माण भर कर सकते हैं। लोहे की जंजीर की जगह सोने की जंजीर आ सकती है। जंजीर मात्र नहीं कट सकती है क्योंकि तप और संयम करने वाला व्यक्ति वही है जो अतप असंयम कर रहा था । उस व्यक्ति में कोई फर्क नहीं पड़ा है । एक आदमी व्यभिचार कर रहा है । इसके पास जो चेतना है, इसी चेतना को लेकर अगर कल वह ब्रह्मचर्य की साधना करने लगे तो व्यभिचार बदल कर ब्रह्मचर्य हो जाएगा। इस व्यक्ति के भीतर को चेतना जो व्यभिचार करती है ब्रह्मचर्य साधेगी । व्यभिचार जैसे एक बन्धन था, ब्रह्मचर्य भी एक बन्धन ही सिद्ध होने वाला है। इसलिए सवाल तप और संयम का नहीं है । सवाल है चेतना के रूपान्तरण का, चेतना के बदल जाने का । और चेतना को बदलने के लिए बाहर के कर्मों का कोई भी अर्थ नहीं है; चेतना को बदलने के लिए भीतर की मूर्छा के टूटने का प्रश्न है । चेतना के दो हो रूप हैं; मूच्छित और अमूच्छित; जैसे कर्म के और असंयम । अगर कर्म में की जगह, मगर चेतना इससे दो रूप हैं- संयम बदलाहट की गई तो संयम आ सकता है असंयम अमूच्छित दशा में नहीं पहुँच जाएगी। मूच्छित के भीतर व्यक्ति सोया हुआ हैं, प्रमाद में है। वह अप्रमाद में कैसे पहुँचेगा ?
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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