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________________ १६७ रंग, उसका भिन्न-भिन्न रूप, वह जो प्रतिपल भिन्न होता चला जा रहा है, उगने से लेकर डूबने तक, उसकी सारी यात्रा और लीज' में जहां सूरज सबसे ज्यादा तपता है एक वर्ष तक, थोड़ा नहीं देखता रहा । पागल हो गया क्योंकि इतनी गर्मी सहना सम्भव नहीं था। एक वर्ष तक निरन्तर आँखें सूरज पर टिकी रहीं, आंखों ने जवाब दे दिया और सिर घूम गया। एक साल पागलखाने में रहा। जब पागलखाने से वापस हुमा तब कहा : अब चित्रित कर सकूँगा क्योंकि जब जिया ही न था, उसे देखा ही न था, उसके साथ ही न रहा था उसे कैसे चित्रित करता? एक सूर्यास्त को चित्रित करने के लिए एक आदमी एक वर्ष तक सूरज को देखे, पागल हो जाए, तब चित्रित कर पाए तो सत्य को, जिसका कोई प्रकट रूप दिखाई नहीं पड़ता, उसे कोई जाने, फिर शब्द में, और माध्यमों से उसे पहुँचाने की कोशिश करे तो उसके लिए लम्बी साधना की जरूरत पड़ेगी। महावीर की जो साधना है वह अभिव्यक्ति के उपकरण सोचने की साधना है। कठिन है: बहत ही कठिन है। उसे समझने की हम कोशिश करेंगे कि वह साधना में कैसे अभिव्यक्ति के लिए एक-एक सीढ़ी खोज रहे हैं, एक-एक मार्ग खोज रहे है। कैसे वह सम्बन्ध बना रहे हैं अलग-अलग जीवन की स्थितियों से, योनियों से । वह हमारे स्याल में आ जाएगा तो पूरी दृष्टि और हो जाएगी, सोचने की बात ही और हो जाएगी।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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