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________________ प्रवचन-५ बहुत आसान है जिसने कहा, "झंझट छूटो।" क्योंकि हमारा चित्त भी वैसा है। वह द्वन्द्व में ही जीता है। इतना निर्द्वन्द्व होना बहुत मुश्किल है कि जहां रहना भी क्रिया न रह जाए, जहाँ उसके भी हम कर्ता न रह जाएं, जहां उसके भी हम द्रष्टा हो जाएं, जहाँ उस पर कभी भी हम रुकें न, कुछ बन्धन न डालें, कुछ व्यवस्था न डालें, जो होता हो, होता रहे । जैसे वृक्षों में पत्ते आते हैं। जैसे आकाश में तारे निकलते है, ऐसा ही सब हो जाए। ऐसा अखण्ड व्यक्ति हो सत्य को उपलब्ध होता है और ऐसे अखंड व्यक्ति से ही सत्य की अभिव्यक्ति हो सकती है। लेकिन इतना अखंड हो जाना ही सत्य की अभिव्यक्ति के लिए काफी नहीं है। अखंड व्यक्ति भी, हो सकता है, बिना सत्य को अभिव्यक्त किए ही मर जाए और बहुत से अखंड व्यक्ति बिना सत्य को प्रकट किए ही समाप्त हो जाते हैं। यह ऐसा ही है जैसे कि सौन्दर्य को जान लेना सौन्दर्य को निर्मित करना नहीं है। एक आदमी सुबह के उगते सूरज को देखता है और अभिभूत हो जाता है सौन्दर्य से । लेकिन यह अभिभूत हो जाना पर्याप्त नहीं है कि वह एक चित्र बना दे सुबह के उगते सूरज का, अभिव्यक्त कर दे उसको, जरूरी नहीं है। तुम सुबह बैठे हो वृक्ष के नोचे और पक्षी ने गीत गाया और तुम डूब गए संगीत में। तुमने अनुभव किया है संगीत लेकिन जरूरी नहीं कि वीणा उठाकर तुम गीत को पुनर्जन्म दे दो। यानी सत्य को अनुभूति एक बात है और उसको अभिव्यक्ति बिल्कुल दूसरी बात । बहुत से अनुभूतिसम्पन्न लोग बिना अभिव्यक्ति दिए समाप्त हो जाते हैं । दुनिया में कितने कम लोग हैं जो सौन्दर्य को अनुभव नहीं करते, लेकिन कितने कम लोग है जो सौन्दर्य को चित्रित कर पाते हैं। कितने कम लोग हैं जिनके प्राणों को आन्दोलित नहीं कर देता संगीत लेकिन कितने कम लोग है जो संगीत को अभिव्यक्त कर पाते हैं। कितने कम लोग हैं जिन्होंने प्रेम नहीं किया है, लेकिन प्रेम को दो कड़ी लिख पाना बिल्कुल दूसरी बात है। ___ यहाँ दो-तीन बातें कहूँ ताकि आगे का सिलसिला ख्याल में रह सके। पहली बात-अखंड को अनुभूति हो जाना पर्याप्त नहीं है। अभिव्यक्ति के लिए कुछ और करना पड़ता है अनुभूति के अतिरिक्त । अगर वह और न किया जाए तो अनुभूति होगी मगर व्यक्ति खो जाएगा। तीर्थकर वैसा अनुभवो है। वह जो कुछ करता है-अभिव्यक्ति के लिए। इसलिए महावीर को जो बारह वर्ष को साधना है वह मेरो दृष्टि में सत्य-उपलब्धि के लिए नहीं है। सत्य को उपलब्ध है। सिर्फ उसकी अभिव्यक्ति के सारे माध्यम सोजे जा रहे हैं उन बारह वर्षों
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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