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प्रवचन-५
दिखाई नहीं पड़ता। और सब कथाएं, जो भो लिखा गया है, वे एकदम बाहर से खोचे गए चित्र हैं । और बाहर से यहो दिखाई पड़ता है कि महल था, महल छोड़ दिया; धन था, धन छोड़ दिया; पत्नो छोड़ दो; प्रियजन थे, निकट के रिश्तेदार थे, सब छाड़ दिये। यहो दोखता है । यहो दिख सकता है। तब त्याग को एक व्यवस्था हम खड़ी करेंगे और उस त्याग की व्यवस्था में बहुत से लोग छोड़ने को कोशिश करेंगे, मर जाएंगे और दिक्कत में पड़ जाएंगे। बहुत लोग यही कोशिश करेंगे कि छाड़ दें मकान को लेकिन मकान पोछा करेगा।
एक जैन मुनि थे। वे बीस वर्ष पहले अपनी पत्नी को छोड़कर गए थे। उनको जीवन-कथा किसी ने लिखी तो वह उसे मेरे पास लाया। मैंने उल्टा पुल्टा कर उसे देखा तो उसमें मुझे एक बात पढ़ने को मिलो-'बीस साल हो गए हैं, पत्नी को छोडे, काशी में रहते हैं। पत्लो मरी है, तार आया है। उन्होंने तार पढ़कर कहा-'चलो झंझट छूटो।' उस जीवनकथा लिखने वाले ने लिखा है-'कैसा परमत्यागी व्यक्ति : कि पत्नी मरो तो केवल एक वाक्य मुख से निकला कि 'चलो झंझट छूटो' और कुछ भी न निकला।' वह लेखक खुद किताव लेकर आए थे, मैंने उनसे कहा, "किताब बन्द करो; किसी को पता न दो।' उन्होंने कहा, 'क्यों ?' मैंने कहा : तुमको पता नहीं-क्या लिखा है इसमें ? अगर ऐसा ही हुआ है तो बोस साल पहले जिस पत्नी को छोड़कर तुम्हारा मुनि चला गया था उसको झंझट बाकी थो। अव उसके मरने से कहता है कि 'झंझट छूटी'-तो झंझट बाकी थी। किसी न किसी चित्त के तल पर झंझट रही होगी। यह पत्नी के मरने की प्रतिक्रिया नहीं है। यह प्रतिक्रिया चित्त के भीतर झंझट चलने की है। झंझट खत्म हुई पत्नी के मरने से। पत्नी को छोड़ने से भी पूरी न हई वह झंझट; क्योंकि वह पत्नी है यह भो न मिटा; क्योंकि उस पत्नी को छोड़ा है यह भी न मिटा; क्योंकि उस पत्नी को क्या-क्या होता होगा यह भी न मिटा । यह कुछ भी न मिटा। और अब वह मर गई तो झंझट छूट गयो।" और मैंने कहा कि यह भी हो सकता है कि तुम्हारे इस मुनि ने कई दफा चाहा हो कि पत्नी मर जाए क्योंकि इसका यह कहना इसको भीतरी आकांक्षा का सबूत भी हो सकता है। इसने कई बार चाहा हो कि वह मर जाए। शायद छोड़ने के पहले चाहा हो कि यह मर जाए। वह नहीं मरी। उसने शायद बाद में भो कभी सोचा हो कि यह मर जाए। क्योंकि यह शब्द. बड़ा अद्भुत है और उसके पूरे अचेतन को खबर लाता है ।