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________________ "प्रवचन-५ होगा या विराग फलित होगा; भोग होगा या त्याग होगा; दुःख होगा, या सुख होगा। द्वंद्व में सब कुछ होगा लेकिन निर्द्वन्द्व कुछ भी नहीं हो पाएगा। महावीर त्याग करते हैं, ऐसी धारणा है। जो उनको मानते हैं, उनके अनुयायी हैं, उनके पीछे चलते हैं उन सबकी ऐसी धारणा है कि वह त्याग करते हैं, महात्यागी है, और मुझे लगता है इसमें वे केवल अपनी भोगवृत्ति को खबर दे रहे हैं। महावीर का उन्हें कुछ भी पता नहीं। और यह सवाल महावीर का नहीं । दुनिया में जब भी किसी व्यक्ति से त्याग हुआ है तो वैसे ही हुआ है। ____ मैंने सुना है एक फकीर थे। रात एक सपना देखा उन्होंने और सुबह जब उठे तब उनका एक शिष्य उनके पास से गुजरा। तब उन्होंने कहा-सुनो जरा ! मैंने एक सपना देखा है। क्या तुम उसकी व्याख्या कर सकोगे ? उसने कहा : ठहरिए मैं अभी व्याख्या किए देता हूँ। वह शिष्य गया और पानी का. भरा हुआ घड़ा उठा लाया और कहा : जरा अपना मुंह धो डालिए। तो गुरु खूब हंसने लगे। तब एक दूसरा शिष्य गुजरा। उसने कहा : सुनो एक मैंने बहुत अद्भुत सपना देखा है। और इस नासमझ को कहा कि तुम व्याख्या करो तो यह पानी का घड़ा ले आया है और कहता है कि मुंह धो डालिए। तुम व्याख्या करोगे ? उसने कहा : एक दो पण रुकिए । मैं अभी आया । वह एक कप में चाय ले आया और कहा : अगर मुंह धो लिया हो तो थोड़ी चाय पी लीजिए । तो गुरु खूब हंसे और वह कहता है कि अगर आज यह घड़ा न लाया होता तो मैंने इसको कान पकड़ कर बाहर कर दिया होता। और अगर यह चाय लेकर न आ गया होता तो इस आश्रम में ठहरने का उपाय न था। सपने को कहीं व्याख्या करनी होती है ? सपना-सपना दिख गया, बात खत्म हो गई। सपने की कहों व्याख्या करनी होती है? तो ठीक ही किया। पानी ले आया। उससे हाथ, मुंह धो लिया। बात खत्म हो गई । अब क्या मामला है ? अब हाथ मुंह धो डालना हो काफी है। अब और कोई व्याख्या की जरूरत नहीं है । सपने की कोई व्याख्या नहीं करनी होती। व्याख्या सदा सत्य की होती है, सपने की नहीं । सपने की क्या व्याख्या ? सपने का बोध त्याग है। सपने का बोध-जो जीवन हम जी रहे हैं वह एक सपने की भांति है- इस बात का बोध । फिर कहां, कुछ पकड़ना है ? ____ मैंने सुना है एक सम्राट का बेटा मर रहा है। वह उसको खाट के पास बैठा है। चार दिन, पांच दिन, दस दिन बीत गए हैं। और बेटा रोज डूबता जा रहा है। और एक ही लड़का है और बचने की कोई उम्मीद नहीं। वही
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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