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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में सराय में ठहरना चाहता हूँ। और पहरेदार कहता है : तुम पागल हो गए हो, संन्यासी हो कि पागल हो। यह सराय नहीं, सम्राट का महल है, उनका निवास स्थान है। तो वह कहता है कि फिर मुझे उसी सम्राट से बात करनी है। क्योंकि हम तो सराय समझ कर यहाँ पाए हैं और ठहरना चाहते हैं । वह धक्का देकर भी चला जाता है। सम्राट भी भावाज सुन रहा हैं, सब बातें सुन रहा है और उससे कहता है : तुम कैसे आदमी हो, यह मेरा निजी महल है। मेरा निवास स्थान है। यह सराय नहीं, सराय दूसरी जगह है। वह संन्यासी कहता है : मैं समझा कि पहरेदार ही नासमझ है; आप भो नासमझ हैं। पहरेदार क्षमा के योग्य है। आखिर वह पहरेदार ही है। आपको भी यही ख्याल है कि यह आपका निवास स्थान है, यह आपका घर है। सम्राट ने कहा : ख्याल ? यह मेरा है। ख्याल नहीं है यह मेरा। यह मेरा है ही। संन्यासी ने कहा : बड़ी मुश्किल में पड़ गया मैं। कुछ दो बार दस साल पहले मैं आया था। तब भी झंझट हो गई थी। और मैंने कहा था कि इस सराय में ठहर जाऊं। तब तुम्हारी जगह एक दूसरा आदमी बैठा हुआ था और वह कहता था : यह मेरा ही महल है। यह मकान मेरा है। तो उस इब्राहिम ने कहा : वह मेरे पिता थे। उनका अब देहावसान हो गया । उस फकीर ने कहा मैं उनके पहले भी आया था, तब एक और बूढे को पाया था। वह भी इसी जिद्द में था कि यह मेरा महल है। जब यहाँ कई बार मकान के मालिक बदल जाते हैं तो इसको सराय कहना चाहिए या निवास ? और मैं फिर आऊँगा कभी। पक्का है कि तुम मिलोगे? वायदा करते हो? तुम न मिले तो फिर बड़ी दिक्कत हो जाएगी। फिर कोई मिलेगा कहेगा मेरा है। तो फिर मझे ठहर ही जाने दो। यह सराय ही है, किसी का नहीं है। जैसे तुम ठहरे हो वैसे मैं भी ठहर सकता हूँ। इब्राहीम उठा सिंहासन से, उस फकीर के पैर छुए और कहा, तुम ठहरो लेकिन अव 'मैं जाता हूँ। उसने कहा कहाँ जाते हो ? सम्राट ने कहा कि मैं तो इस भ्रम में ठहरा हुआ था कि यह मेरा मकान है। अगर सराय हो गया तो बात खत्म हो गई। जो मैं ठहरा था इस वजह से कि यह मेरा है महल । अगर तुम कहते हो कि यह सरय है तो ठीक है, तुम ठहरो। मैं जाता हूँ। और वह सम्राट् छोड़कर चला गका। उस सम्राट ने त्याग किया क्या ? नहीं। मकान (सहीं था, सराय थी, यह दिखाई पड़ गया। बात खत्म हो गई। सराय का कोई त्याग करता है ? नहीं, सराय में ठहरता है और विदा हो जाता है।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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