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________________ YE महावीर : मेरी दृष्टि मैं और पुण्य भी इसलिए ध्यान वह अगर त्याग बाते-बही हैं और धर्म भी सिक्का है जो कहीं और चलता है । मोहरें हैं जो कहीं काम पड़ती हैं । और वह उनको पकड़ेगा । देवे की यह बात है कि जो व्यक्ति पकड़ने के चित्त से भरा है, करेगा तो वह भी नहीं होने वाला है । इसलिए सवाल त्याग करने का नहीं, सवाल पकड़ने वाले चित्त की वस्तुस्थिति को समझ लेने का है। अगर हमारी समझ में आ गया कि यह है चित्त पकड़ने वाला और पकड़ना व्यर्थ हो गया तो पकड़ विलीन हो जाएगी, त्याग नहीं होगा। पकड़ विलीन हो जाएगी और चीजें ऐसी दूर हो जाएंगी, जैसे वह दूर हैं ही। कौन सा मकान किसका है ? एक पागलपन तो यह है कि पहले मैं यह मानूं कि यह मकान मेरा है। और फिर दूसरा पागलपन यह है कि मैं इसका त्याग करूँ । लेकिन यह ध्यान रहे कि अगर यह मकान मेरा नहीं है तो मैं त्याग करने वाला कौन है ? त्याग में भी मेरा स्वामित्व शेष है । मैं कहता हूँ यह मकान में त्याग करता हूँ। मैं ही त्याग करता हूँ न ? और क्या त्याग में कर सकता हूँ उसका जो मेरा ही नहीं ? तो त्याग करने वाला यह मानकर ही चलता है कि मकान मेरा है । और वस्तुतः जो त्याग की घटना घटती है वह इस सत्य से घटती है कि किसी को पता चलता है कि यह मकान मेरा है ही नहीं। तो त्याग कैसा ? मेरा नहीं यह बोध पर्याप्त है, कुछ छोड़ना नहीं पड़ता १ जो मेरा नहीं है, वह छूट गया और चीजें थोड़े ही हमें बाँधे हुई हैं। चीजें और हमारे बीच में 'मेरे' का एक भाव है, जो बांधे हुए है। है, । एक मकान है जिसमें आग लग गई है । तब घर का मालिक रो रहा है; चिल्ला रहा है : ओर इसी भीड़ में से एक कहता है आप क्यों परेशान हो रहे हैं ? आपको पता है कि आपके बेटे ने मकान बेच दिया है और पैसे मिल गए हैं । बेटे ने खबर नहीं दो आपको। और वह आदमी एकदम हंसने लगा और उसने कहा : ऐसा है क्या ? अब भी वह मकान जल रहा है, अब भी आदमी वही है, सब भीड़ भी वही है । लेकिन अब वह उसका मकान नहीं रह गया है । मकान बेचा जा चुका है। अब वह मेरा नहीं । वह हंस रहा है बातें कर रहा है जैसी कि और सारे लोग कर रहे हैं कि बहुत बुरा हो गया कि मकान जल गया है । लेकिन तभी उसका बेटा भागा हुआ आता है। वह कहता है, वह आदमी बदल गया' है । रुपए अभी मिले नहीं हैं। सिर्फ बेचा था । असल में वह आदमी बदल गया है और वह आदमी फिर चिल्लाने लगा है कि मैं मर गया, मैं लुंट गया । अब क्या होगा ? एक क्षण में 'मेरा' फिर जुड़ गया और वह सब ऐसी हल्की
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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