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________________ प्रवचन-५ १७ पड़ा हो सकता हूँ। हो सकता है मर रहा होऊँ और मुझे कोई छप्पर न मिले । तो मैं असुरक्षित है। इसलिए मकान को जोर से पकड़ ता है; धन को जोर से पकड़ता हूँ क्योंकि कल का क्या भरोसा है । कल के लिए कुछ इन्तजाम चाहिए। जिस व्यक्ति के मन में जितनी असुरक्षा का भाव है, वह उतना चीजों को जोर से पकड़ेगा। लेकिन जिस चेतना को यह पता हो गया कि उसके तल पर कोई असुरक्षा नहीं, वहाँ न कोई भय है; न कोई पीड़ा है, न कोई दुःख है; न कोई मृत्यु है-ऐसा जिसे पता चल गया है वह कुछ भी नहीं पकड़ता। पकड़ता था असुरक्षा के कारण असुरक्षा न रही तो पकड़ भी न रही। और जो अपने भीतर प्रविष्ट हुआ है वह तो प्रतिक्षण, प्रतिपल अपने आनन्द से भर गया है कि कल का सवाल कहाँ है कि कल क्या होगा, आज काफी है । जीसस निकलते थे एक बगीचे के पास से और बगीचे में फूल खिले हैं। और जीसस ने अपने शिष्यों से कहा है : देखते हो इन फूलों को ? खुद सोलोमन भी अपनी पूरी समृद्धि में इतना शानदार न था। सम्राट् सोलोमन, जिसने सारी पृथ्वी के धन को इकट्ठा कर लिया था, अपनी पूरो समृद्धि में और साम्राज्य में, इन साधारण से फूलों के मुकाबले में न था। देखते हो इनकी शानदार चमक, इनकी मुस्कराहट, इनका नाच । और साधारण से गरीब लिली के फूल ! तो किसी ने पूछा है : कारण क्या है ? रहस्य क्या है इसका कि सोलोमन साधारण लिली के फूल से भी शानदार न था। तो जोसस ने कहा : फूल अभी जीते हैं। सोलोमन कल के लिए जोता था। फूल अभी है। उन्हें कल की कोई चिन्ता नहीं, आज काफी है। और तुम भी फूलों की तरह ही रहो कि आज काफी हो जाए । तो जिसके लिए आज का, अभी का यह क्षण. काफी है, आनन्द से भरा है, वह कल के क्षण की चिन्ता नहीं करता। इसलिए कल के क्षण के लिए इकट्ठा करने का पागलपन भी उसके भीतर नहीं है । वह जीता है आज के लिए। तो ऐसा व्यक्ति कुछ पकड़ता नहीं; छोड़ने का सवाल ही नहीं। छोड़ना आता है पोछे; त्याग आता है पीछे। जब पकड़ आ जाए तो सवाल उठता है, छाड़ो ! ऐसा व्यक्ति पकड़ता हो नहीं। और ध्यान रहे कि जिसको पकड़ आ गई है अगर वह छोड़ेगा तो पकड़ बाको रहेगी, छोड़ने को पकड़ लेगा। वह पकड़ उसकी आदत का हिस्सा हो गई है। उसने धन पकड़ा था, अब वह त्याप पकड़ेगा। उसने मित्र पकड़े थे, अब वह परमात्मा को पकड़ेगा; परिवार पकड़ा था, अब वह पुण्य, पाप, धर्म पकड़ लेगा। कल खाते-बही पकड़े थे, अब वह शास्त्र पकड़ लेगा। शास्त्र भी
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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