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________________ ( x) 'महावत और अर्युवत, दर्शन, मान, चरित्र, विविष योनियां - और मोच, महावीर से सम्मकं स्थापित करने की सम्भावना । १. प्रवचन : २७५-२६८ महावीर से सम्पर्क स्थापित करने का मार्ग, धावक शब्द का ..: अर्थ, श्रावक बनने की कला, प्रतिक्रमा,सामायिक । १०. प्रवचन : ... २६९-३२३ सामायिक की व्याख्या। ११. प्रश्नोत्तर-प्रवचन : ३२५-३५६ नैतिकता और नैतिक साहस, पाखण्डी ब्रह्मचर्य और सही ब्रह्मचर्य, कामोपभोग का सम्यक् प्रकार, दैनिक प्रक्रिया में सतत लागरण, व्रतमीमांसा, भूत-प्रेतों के सम्बन्ध में । १२. प्रश्नोत्तर-प्रवरन : ३६१-४०३ सामायिक और वीतरागता में अन्तर, कार्यकारण सिद्धान्त का सविस्तार विश्लेषण, कर्मों की सूखी रेखा का सिद्धान्त, कर्मवाद की न्याय-सङ्गति, कर्मवाद और समाजवाद, कर्मों की सूखी रेखा की व्याख्या। १३. प्रवचन: ४०५-४३४ संकल्प और उसका उपयोग, विकास सिद्धान्त, विकास प्रक्रिया में डारविन के मत की आलोचना, कर्मवाद और पुनर्जन्म, 'तीर्थकरों की माताओं के स्वप्न, जागृत दशा में मृत्यु, तिम्बत में 'बारदो' का प्रयोग, सूक्ष्म शरीर । १४. प्रश्नोत्तर-प्रवचन : ४३५-४५५ महावीर को गुरु की खोज अनावश्यक, भिक्षा की शर्ते, गृहत्याग पलायन नहीं है। १५. प्रश्नोत्तर-प्रवचन: ४५७-४६० महावीर अहंवादी नहीं है, प्रेम में शर्त नहीं है, महावीर का जन्म जगत् की जरूरत थी, अध्यात्म विज्ञान की खोज में . तिब्बत का योग, महावीर पोर बहिंसा, सीमित क्षेत्र में ही .
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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