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________________ १२० । । महावीर : मेरी दृष्टि में मौन है । क्योंकि है कोन, इसका क्या उत्तर देना? कोई लेबिल होता तो उत्तर दे देते। महावीर निरन्तर मौन है। लोग जो कहते हैं वह चुपचाप खड़े हैं, सब सह लेते हैं। गांव के पास खड़े हैं । गाय चराने वाला अपनी गाय और बैल को उनके पास छोड़ जाता है और कहता है-जरा देखना, मैं अभी लोटकर आता है। मेरी कोई गाय खो गई है। वह यह भी नहीं कहते कि मैं नहीं देचूंगा । इतना कह दें तो मामला खत्म हो जाए । वह यह भी नहीं कहते कि मैं देखूगा। इतना कह दें तो बात खत्म हो जाए । वह आदमी एक लेबिल लगा ले झंझट के बाहर हो जाए। महावीर खड़े रहते हैं जैसे कि सुना अनसुना किया, जैसे प्रश्न पूछा नहीं गया। ऐसे खड़े रहते हैं। वह आदमी चला गया है खोजने । वह शाम होते-होते खोजकर लौट आता है। गाय और बैल जो पीछे महावीर के पास छोड़ गया था, उठकर जंगल में चले गए है । उस आदमी ने पूछा कि गाय-बैल कहां हैं ? तब भी वह वैसे ही खड़े हैं क्योंकि आने-जाने का हिसाब ही नहीं रखते वह कुछ । वह वैसे ही खड़े हैं। वह कहता है कि तुमने उसी वक्त क्यों नहीं कह दिया था तब भी वह वैसे ही खड़े हैं । तब वह आदमी समझता है कि इसने चुरा लिये हैं, इसने कहीं छुपा दिए हैं। यह आदमी बेईमान है: वह मारपीट करता है। वह मारपीट को भी सह रहे हैं फिर भी वैसे खड़े है। लेकिन थोड़ी देर में वह गाय बैल लौट आए हैं जंगल के बाहर। -सांस होने लगी है; धूप दब गई तो वापस लोट पड़े। वह आदमी बहुत दुखी होता है । वह क्षमा मांगता है। तब भी वह वैसे ही खड़े है । यह आदमी कोई शर्त में नहीं, कोई लेबिल में नहीं; जो हो रहा है, उसमें वैसा ही बड़ा है, अजेय है। बद्भुत घटना है। जो भी हो रहा है, कुछ भी हो रहा है जैसे इसे मतलब ही नहीं कि क्या हो रहा है । यह हर हालत में वैसा ही खड़ा है और सब चीजों को देख रहा है । इस व्यक्ति को समझने में बड़ी कठिनाई है। पीछे, जिन्होंने शास्त्र लिखे, उन्होंने कहा : महावीर बड़े क्षमावान् हैं; उन्होंने क्षमा कर दिया है। कोई मारता है तो उसे क्षमा कर देते हैं। मगर समझ ही नहीं पाए लोग । क्षमा वही करता है जो क्रोधित होता है। क्षमा, क्रोष के बाद का हिस्सा है । जो महावीर को क्षमावान् कहता है, वह महावीर को समझता ही नहीं। महावीर को क्रोष ही नहीं उठता, चमा कौन करेगा, किसको करेगा ? महावीर देख रहे हैं। वे ऐसा ही देख रहे हैं कि इस आदमी ने ऐसा-ऐसा किया है। पहले मारा; फिर पमा मांगो । देख रहे हैं, ऐसा-ऐसा हुबा । और बड़े है चुपचाप और सब देख रहे हैं। उसमें कोई चुनाव भी नहीं
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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