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महावीर : मेरी दृष्टि में
करो । सेक्स सर्वाधिक गहरी है क्योंकि बाइलोजी ( जीवविज्ञान ) और पूरी प्रकृति उसमें उत्सुक है । लेकिन ऐसा व्यक्ति जिसके लिए स्त्री ही मिट गई है, चुपचाप खड़ा आदमी, हमें समझ में बहुत मुश्किल से आता है । न, भागता है, न उत्सुक हैं, न स्त्री के प्रति उन्मुख है, न स्त्री से विमुख है । न राग में है, न विराग में है इसलिए महावीर के लिए जो शब्द इस्तेमाल हुआ है वीतराग, बड़ा अद्भुत है । वीतराग का मतलब है- राग से मुक्त । न विराग है न राग ।
राग और विराग एक ही सिक्के के दो पहलू हैं कि एक व्यक्ति राग की दुश्मनी में विरागी हो जाए; विराग की दुश्मनी में रागी हो जाए। लेकिन वीतरागी का मतलब है जिसका राग-विराग गया, जो सहज खड़ा रह गया; न भागता है, न आता है, न बुलाता है, न भयभीत है । वीतराग का मतलब ही यह है कि जहाँ न राग है, न विराग है; और महावीर के पीछे चलने वाला जो साधक है वह राग से विराग को पकड़ता है । राग को बदलता है विराग में । विरागी सिर्फ उल्टा रागी है - शीर्षासन करता हुआ रागी । सिर्फ सिर के बल पर खड़ा हो गया है । रागी कहता है - स्पर्श करूँगा, प्रेम करूंगा, जिऊँगा । विरागी कहती है- स्पर्श नहीं करूँगा, प्रेम नहीं करूंगा, है, खतरा है बंध जाने का । एक बंधने को आतुर है, है । लेकिन, बंधन दोनों के केन्द्र में हैं। दोनों की नजरों में बंधन हैं । इसलिए
जिऊँगा भी नहीं । भय
एक बंधने से भयभीत
राग विरागी की पूजा करने निकल जाएँगे ।
क्योंकि, वीतरागी, जो हमारी पड़ जाता है एकदम । तराजू के तराजू के उस पल्ले पर रखो तब तोल कहाँ ? राग एक पलड़ा सकती है । लेकिन वीतराग महावीर को सताए जाने का
वीतरागी को पहचानना बहुत मुश्किल हैं। कंटेगरीज हैं-नाप जोख हैं— उनके बाहर इस पल्लू पर रखो तब भी तोल हो जाती है, भी तोल हो जाती है । तराजू से उतर जाओ तो है, विराग दूसरा पलड़ा है । दोनों पर तोल हो की तोल क्या होगी ? वीतराग को कैसे तोलोमे ? जो लम्बा उपक्रम है उसमें वीतरागता कारण है ? विरागी को इस मुल्क ने कभी नहीं सताया, यह ध्यान में रहे। महावीर के जमाने में कोई विरागियों की कमी नहीं रही । विरागी का सदा आदर रहा है । विरागी को कभी नहीं सताया किसी ने क्योंकि रागी विरागी को कभी सत्ता ही नहीं सकते - रागी सदा विरागी को पूजते हैं क्योंकि रागी को लगता है कि मैं कैसी गंदगी में उलझा हूँ लेकिन विरागी कैसा मुक्त हो गया है सारी गंदगी से । लेकिन वीतरागी को दोनों सताते हैं-रागी भी ओर विरागी भी; क्योंकि रागी को लगता है कि यह आदमी