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महावीर : मेरी दृष्टि में
कि हाँ तुम चले थे। लेकिन, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । तुम कहोगे कि वह सिर्फ दिखाई पड़ा था तुम्हें कि हम चले थे । लेकिन भीतर में अचल था । कोई नहीं चला था ।
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कोन सी क्रिया है यह सबाल नहीं है महत्त्वपूर्ण । यदि क्रिया के भीतर तुम जागे हुए हो तो तुम क्रिया से भिन्न हो गए। और तब क्रिया जगत् के इस जाल का एक हिस्सा हो गई । जैसे स्वांस चल रही है और अगर तुम देख रहे हो वो स्वांस का चलना या न चलना जगत् की विराट् व्यवस्था का हिस्सा हो गया और तुम बिल्कुल बाहर होकर देखने लगे कि स्वांस चल रही है । जैसे तुमने सूरज को उपते डूबते देखा । सूरज दूर है। फर्क इतना ही है स्वाँस जरा पास वह देह तुमसे थोड़ी दूर है। लेकिन
चलती है । एक पक्षी मैथुन कर रहा है । उसको मैथुन करते देखकर यह तो नहीं कहते कि मैं कहते हो : मैं देख रहा हूँ । पक्षी मैथुन करता हैं। तल पर जिस दिन चेतना सम्पूर्ण रूप से साक्षी हो बड़े पक्षी से ज्यादा अर्थ का नहीं रह जाता और तुम कह सकते हो - शरीर से हो रहा है। इमें। कठिन इसलिए कि हम मैथुन में निरन्तर मूच्छित हुए हैं, सब चीजों में मूच्छित हुए हैं ।
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मैथुन कर रहा हूँ । तुम
तुम बाहर हो गए । एक जाती है, यह शरीर दूर
उतना ही फासला हो जाता है । समझना कठिन मालूम पड़ता है मूच्छित हुए हैं, भोजन में
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गुरजीएफ एक फकीर था । उसका काम था कि लोग उसके पास आएं 1 बहुत अद्भुत था वह व्यक्ति । इसी सदी में थोड़े से जानने वाले दो चार लोग जो हैं, उनमें से एक आदमी था वह। लोगों को ऐसी चीजें सिखाता कि तुम सोच ही नहीं सकते । लोगों से कहता तुम क्रोध करो। वह ऐसा अवसर पैदा कर देता कि उसको क्रीध आ जाए। जैसे कि आप आए हो तो वह ऐसे उपद्रव खड़े करवा देगा आपके चारों तरफ कि आप क्रोधित हो जाओ और आप चिल्लाने लगो, आग-बबूला हो जाओ, सारा इन्तजाम होगा कि आप को आग-बबूला किया जाए। और फिर वह एकदम से कहेगा-देखो, क्या हो रहा है और तुम चौंक गए हो । आँखें लाल हैं, हाथ कांप रहे हैं । और तुम हँसने लगे हो । तुम्हारा हाथ जब भी कांप रहा है और आंखें लाल हैं । तुम्हारे होंठ फड़क रहे हैं, तुम्हारा मन किसी को गर्दन दबा देने को है । और उसने कहा कि देखो । और तुम्हें याद ना गया कि उसने क्रोध का इन्तजाम करवाया था पूरा का पूरा । अब तुमने देखा और तुम एक क्षण में अलग हो गए, क्रोध अलग हो गया और तुम एक क्षरण में अलग खड़े हो गए। तब सब शान्त हो गया है भीतर । मगर