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________________ प्रश्नोत्तर - प्रवचन- ४ १०५ सब मूर्तियां बहुत गहरे में उस 'मनोदेह' को प्रकट करने की एक उपाय मात्र हैं । सब प्रार्थनाएं, सब आकांक्षाएं उस चेतना को विगलित करने के उपाय मात्र हैं कि उससे किसी तरह का सम्बन्ध स्थापित हो सके । और यह बहुत रहस्यवादी प्रयोग की बात है। इसलिए मन्दिर, मस्जिद में जो अब हो रहा है वह तो सब कचरा लेकिन जो व्यवस्था है पीछे वह बड़ी अर्थपूर्ण है । उस अर्थपूर्ण व्यवस्था का उपयोग जो जानते हैं वे करते ही रहे हैं और आज भी करते हैं । क्षीण होती जाती है निरन्तर वह सम्भावना, यानी ख्याल ही मिटते जाते हैं कि हम क्या करें ? ऐसा ही है जैसे कि समझें कि तीसरा महायुद्ध हो जाए, दुनिया खत्म हो जाए, कुछ लोग बच जाएं और हमारा यह बिजली का पंखा उनको मिल जाए । तो वे अतीत संस्मरण की तरह उसे रखे रहेंगे कि . हो भी सकता पता नहीं यह किस काम का था। लेकिन यह कुछ भी समझ में न आ सके कि यह हवा करता रहा होगा। क्योंकि न उसके पास बिजली का ज्ञान रह जाए, न उसके पास प्लग का ज्ञान रह जाए, न इस पंखे की आन्तरिक व्यवस्था को समझने की उनकी अक्ल रह जाए; तो हो सकता है, वह अपने म्यूजियम में इस पंखें को रख लें, तार को रख लें, रेल के इंजन को संभाल कर रख लें; हो सकता है कि पूजा भी करने लगें, अतीत के स्मृतिशेष चिन्हों के स्मरण की तरह । लेकिन यह कोई पता न होगा कि रेल का इंजन हजारों लोगों को खींच कर भी ले जाता रहा होगा क्योंकि न पटरियाँ बचें, न इंजिनियरिंग शास्त्र बचें, न कोई खबर देने वाला बचे कि कैसे चलता होगा ? कैसे क्या होता होगा ? क्योंकि कोई भी व्यवस्था हजारों विशेषज्ञों पर निर्भर करती है। है कि एक आदमी ऐसा बच जाए जो कहे कि मैं रेल में बैठा था रेल के डिब्बे खींचने का काम करता था। लेकिन, लोग उससे चलाकर बता दो तो वह कहे मैं सिर्फ बैठा था, मैं चलाकर नहीं बाकी मुझे इतना पक्का स्मरण है कि मैं इस गाड़ी में बैठा था, इसमें हजारों लोग बैठते थे और यह गाड़ी एक गाँव से दूसरे गांव जाती थी। मगर में चलाकर नहीं बता सकता; लेकिन मैं बैठा था इतना पक्का है । और यह बैठने वाला चिल्लाता रहे और किताबें भी लिखे कि यह रेल का इंजन है, इसमें लोग बैठते थे, चलाते थे लेकिन कोई उसकी सुनेगा नहीं क्योंकि यह चलाकर नहीं बता सकेगा । तो हर दिशा में, बाह्य या आन्तरिक हजारों उपाय खोजे जाते हैं । लेकिन कभी-कभी आमूल सभ्यताएं नष्ट हो जाती हैं, खो जाती हैं अन्धकार में अगर उनके विशेषज्ञ खो जाएं। हजार कारण होते हैं खो जाने के । आज और यह इंजन कहें कि तुम बता सकता ।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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