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महावीर का जीवन संदेश
आज सार की स्थिति विचित्र है । हिंसा से यदि कोई अधिक से अधिक डरते है, तो वे आज के यूरोपियन है । २५ वर्ष पहले प्रथम विश्वयुद्ध मे हुए सहार और नाश को वे आज भी भूले नही है । उन्हे भय है कि यदि फिर से युद्ध की ज्वाला भडक उठी तो हमे अपने सारे वैभव, सारे मौज-शौक, भोग-विलास और ऐश्वर्य से हाथ धोने पडेगे । यूरोप का मनुष्य यह सोचकर काँप उठता है कि आज संस्कृति के नाम पर जिस वैभव-विलास का आनन्द हम भोगते है, वह युद्ध होने पर नष्ट-भ्रष्ट हो जायगा । युद्ध को टालने के लिए वह सब कुछ करने को तैयार है । इसके लिए वह दिये हुए वचनो को भग करेगा, किये हुए कौल - करारो को भुला देगा, अपमानो का कडवा घूट पी जायगा, अपने साथियो को धोखा देगा और कैसे भी अप्रिय लोगो के साथ मित्रता वाँधेगा। युद्ध को टालने के लिए वह अपने जीवन-सिद्धान्तो को भूमी की तरह हवा में उडा देगा। लेकिन इतना सब करने के बाद भी वह युद्ध को टाल नही सकेगा । इद्रिय-परायण जीवन, भोग-विलास, वारानाये, लोभ, भय, महत्त्वाकाक्षा और परस्पर अविश्वास उसे शाति से बैठने नही देगे । हिंसा से भयभीत वना हुग्रा यूरोप का मनुष्य सारी दुनिया को हिसा की दीक्षा दे रहा है और मारने की कला का विकास करने के लिए जीवन की कई अच्छी शक्तियों को नष्ट कर रहा है। आज वह जिस युद्ध को टालना चाहता है उसी युद्ध को जोरो से खीच कर अपने निकट ला रहा है ।
ऐसी विचित्र परिस्थिति में आज हम एक बार फिर भगवान् महावीर के सन्देश को उज्ज्वल बनाना चाहते हैं ।
इस धार्मिक सन्देश को ग्रहण करने के लिए आज की दुनिया तैयार नही है । यह शान्ति का मार्ग तो है, किन्तु इस मार्ग पर चलने में मनुष्य को अभी आनन्द नही आता । पहले वह दूसरे सारे मार्ग आजमायेगा और सव तरह से हारने के बाद ही लाचारी से इस सच्चे मार्ग पर आयेगा ।
मनुष्य का यह स्वभाव है कि वह ऐसे उपायो पर विश्वास रख कर उन्हे पहले आजमाता है, जिनमे कोई सार नही होता । श्राज यूरोप मे जो अनेक मार्ग सुझाये जाते है, उनसे हमे आश्चर्य होता है । हमारे यहाँ के पुराने