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महावीर का विश्वधर्म
मिशनरी धर्म अपने तत्त्वो के प्रति अवश्य वफादार रहे, लेकिन अपने स्वरूप के सम्बन्ध मे प्राग्रह न रखे । 'जैसा देश, वैसा वेश' का नियम धर्म पर भी - खासकर विश्वधर्म पर घट सकता है । विश्वधर्मं यदि सच्चा विश्वधर्म है तो वह अपने नाम का भी आग्रह नही रखेगा ।
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ऐसा समझने के लिए कोई कारण नही कि किमी समय दुनिया मे विश्वधर्म तो एक ही हो सकता है । जिस तरह किमी कमरे मे रखे हुये चारपाँच दीपक अपना-अपना प्रकाश मारे कमरे मे सर्वन फैलाते हैं, सारे कमरे के राज्य का उपभोग करते है और फिर भी अपने-अपने व्यक्तित्व की रक्षा करते हैं, उसी तरह अनेक विश्वधर्म एक साथ सारे जग के राज्य का उपभोग कर सकते हैं । धर्म मे द्वेष या मत्मर कहाँ से श्रायेगा ? एक म्यान मे दो तलवारे नही रहेगी, एक दरवार मे दो मुत्सद्दी (राज नेता ) कार्य नही करेंगे, लेकिन दुनिया में एक साथ चाहे जितने धर्मं माम्राज्य का उपभोग कर सकते है, क्योंकि धर्म तो स्वभाव से ही ग्रहिमक होता है। धर्म के मानी ही हैं श्रद्रोह । जहाँ धर्म-धर्म के बीच झगडे चलते हैं और मख्याबल की ग्राकाक्षा दिखाई देती है, वहाँ यह मान ही लेना चाहिए कि उन लोगो के धर्म मे धार्मिकता नही रही है, धर्म के नाम से अधर्म की हुकूमत चल रही है। उनके हृदय में धर्म का वीर्य क्षीण हो गया है। ऐसी हालत मे वही दुनिया को वार सकेगा जो धर्मवीर होगा। महावीर होगा ।
अहिंसा के सम्पूर्ण स्वरूप को हमे ममझ लेना चाहिये । ग्रहिसा महावीर का धर्म है । सारी दुनिया को जीतने की प्राकाक्षा रखने वाले जिनेश्वर का धर्म है | जब तक दुनिया के एक कोने मे भी हिंसा होनी रहेगी, तव तक यह अहिंसा धर्म पराजित ही है । सिर्फ सूक्ष्म जन्तुम्रो को कृत्रिम तरीको से भरण-पोषण देकर जिलाने से ही अहिंसा धर्म को सन्तोप नही होना चाहिए । जो महावीर है उसको चाहिए कि वह महावीर की तरह तमाम दुनिया का दर्द - पाँचो खण्डो का दर्द - खोजकर देख ले, और अपने पास की सनातन दवा वहाँ पहुँचा दे । महावीर के अनुयायियो को हृदय की विशालता और उत्माह की शूरता प्राप्त करके सभी जगह मचार करना चाहिए । सगाम का वीर शस्त्रास्त्र लेकर दौडगा । ग्रहिंसा का वीर ग्रात्म शुद्धि और करुगा से सुमज्जित होकर दौडेगा। सारी दुनिया को एक 'उपासरे' (जैन साधु का मठ) मे वदल देना चाहिए। छोटे मे उपासरे मे कितनो को आश्रय मिल सकेगा ? २७-७-२४