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महावीर का जीवन सदेश
किसी भी व्यक्ति या समाज के वारे मे वोनते समय एक और असुविधा भी वाधक होती है । अगर गुण वताये जाय तो वह खुशामद अथवा ऊपरी शिष्टाचार माना जाता है, मानो मनुष्य दूसरो के दोप बताते समय ही मच बोलता हो। और, दोप बताते समय मनुष्य तटस्थ बुद्धि रखे तो भी कोई उस पर विश्वास नहीं करता। मेरे जितने भी जैन मित्र है उनकी उदारता और सहिष्णुता पर मैं मुग्ध हूँ। कट्टर जैन समाज में उनकी प्रतिष्ठा कितनी है, यह मैं नहीं जानता। किन्तु मेरी दृष्टि मे वे मित्र अहिंसा के सच्चे उपासक है । जैनो की मकुचितता के बारे मे मैंने बहुत कुछ सुना हे वे दान करेंगे तो वह उनकी अपनी जाति तक ही मर्यादित रहेगा, मदद करेंगे तो वह अपनी जानि के नौजवान। की शिक्षा के लिए ही होगी, फड एकत्र करेंगे या छात्रालय ख.लेगे तो भी वह अपनी जाति के प्रति रही भावना के कारण ही होगा। इस विषय मे में इतना ही कह सकता हूँ कि मेरा अनुभव इमसे भिन्न है। मैं जिस राष्ट्रीय विद्यापीठ मे काम करता हूँ, उसका विशाल भवन एक जैन सज्जन ने बनवाया है, ममस्त धर्मों के धर्मग्रन्थो से अहिंसा शास्त्र की शोध करने की मुन्दर मुविधा एक अन्य जैन सज्जन ने वहाँ कर दी है। देश की दुर्दशा की दवा के रूप में हमने अभी-अभी ग्राम-सेवा की जिस योजना पर अमल शुरु किया है, उमका आर्थिक बोझ भी एक उदार हृदय वाले जैन सज्जन ने ही उठा लिया है। ऐसे किनने उदाहरण मैं आपके सामने रख सकता हूँ।
परन्तु आप कहेगे कि 'प्रत्येक जाति मे ऐसे उदार सज्जन हो सकते है, आप एक जाति के नाते हमारे कुछ दोप बताइये ।' मैं दोष बता सकू इतना निकट परिचय अभी जैन समाज के साथ मेरा नही है। किन्तु जो शकाये मेरे मन मे उठी है उन्हे ही यहाँ प्रश्न के रूप मे पूछ लूं।
गुजरात के जैन अधिकतर गांवो मे रहते हैं या शहरो मे ? यदि वे शहरो मे ही रहते हो, तो आपको इस विषय मे गहरा विचार करना चाहिये । जैन लोग अधिकतर खेती करते ही नही । क्या यह बात सच है ? यदि सच हो तो मुझे कहना चाहिये कि यह स्थिति गभीर है । यदि ऐसा ही हो तो मैं कहूँगा कि आपको अपने अस्तित्व के बारे मे और अपनी प्रतिष्ठा के वारे मे जितनी सावधानी रखनी चाहिये उतनी आप नही रखते । इतना ही नही, मैं तो यह भी कहूँगा कि आप अहिंसा-धर्म के पालन की पूरी तैयारी नही करते । आहार पर जीने वाला मनुष्य खेती से विमुख रहे, यह कोई साधारण दोप है?