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अजितवीर्य वाहुवलि
21 वाले किसान, इन सवको देख कर भी मैसूर को स्वर्ण-भूमि ही कहना पडेगा। मैसूर राज्य के दो बडे-बडे भाग है। पश्चिमी भाग को पालनाड अर्थात् पहाडी प्रदेश कहते है और पूर्वी भाग को मैदानी । दोनो भागो मे छोटे-बडे सुन्दर मन्दिर और तीर्थ-स्थान फैले हुए है। प्राचीन समृद्धि, सुव्यवस्था, सात्विक पुरुषो के भक्ति और जनता के धार्मिक उत्सव आदि के साक्षी रूप ये स्थान मैसूर राज्य की ऐतिहासिक सम्पत्ति है। लेकिन इनमे भी हासन जिले में स्थित तीन स्थान मैसूर को भारत-विख्यात ही नहीं, विश्व-विख्यात भी बना देते हैं । उत्कल प्रान्त मे पुरी, भुवनेश्वर, कोनार्क आदि स्थान, आबू के पहाड मे देलवाडा के मन्दिरो, नर्मदा के किनारे के असख्य देवालय तथा तामिलनाड मे आज भी खडे भव्य मन्दिरो की स्थापत्य-समृद्धि के कारण समस्त विश्व का ध्यान हमारे देश की ओर अधिकाधिक खिचता चला पा रहा है। उनमे भी कलारसिको के कथनानुसार, अजता की चित्रकला और बेलूर हलेवीड का मूर्ति-विधान सारे समार मे अद्वितीय है। वेलूर और हलेबीड हासन जिले मे एक दूसरे से दस-बारह मील के फासले पर है। क्सिी समय ये दोनो स्थान राजधानी के रूप में प्रसिद्ध थे, आज भारत की क्लाधानी के रूप मे उत्तरोत्तर प्रसिद्धि पा रहे है । दोनो स्थानो के पास-पास जैन मन्दिर हैं, जिन्हें 'वस्ती' कहते है। सभी वस्तियां दिगम्बर (एक भेद) सम्प्रदाय की हैं और उच्च कोटि की कारीगरी व्यक्त करती है । इस प्रदेश के गांव-गांव मे विखरी मूर्तियाँ और कारीगरी से खण्डित पत्यरो को इकट्ठा करके किसी भी राष्ट्र के गर्व करने योग्य अद्भुत-संग्रहालय (Musium) तैयार हो सकता है। लेकिन यह काम इतना कठिन और व्यय-साध्य है कि उसके लिए छोटे और साधारण स्थिति के राजानो की तो हिम्मत ही नही हो सकती । वेलूर के मन्दिर मे मैमूर राज्य की ओर से विशेष विजली का प्रवन्ध किया गया है, जिसके कारण उसकी कला को भली प्रकार देखने की सुविधा हो गई है। परन्तु इन मन्दिरो का सक्षेप मे वर्णन नही किया जा सकता। आज तो मुझे हासन से पश्चिम मे, मोटर से चार घण्टे का रास्ता पार कर आने वाले श्रवणवेलगोल नामक स्थान की ही चर्चा करनी है और उसमे भी विध्यागिरि पर स्थित श्री गोमटेश्वर की विशाल मूर्ति की।
महिपमण्डल अथवा मैमूर का उल्लेख अशोक के शिलालेखो मे मिलता है । ऐसा कहा जाता है कि अशोक के दादा चन्द्रगुप्त अपने गुरु भद्रबाहु को लेकर जीवन के अन्तिम दिन बिताने के लिए यहां आये थे। अपने राज्य मे वारह वर्ष का अकाल देख कर और स्वय को प्रजा के बचाने में असमर्थ