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महावीर का जीवन सन्देश
हमारी इतनी बडी संस्कृति है, इतना बडा देश है और इतनी जवरदस्त लोकसख्या है, पर हमारा नेतृत्व कही भी नही है ।
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यदि हम अहिंगा-धर्म को मानते है और गांधीजी ने अहिसा को जो व्यापक रूप दिया है उसके लिये हमे गर्व है तो हमे रुदियं का साम्राज्य तोडना चाहिये । जैन - रुढि अनुसार खाने-पीने की सुविधा हो उसी प्रदेश मे जैन साधु रहे, विदेश जाये ही नही, तो अहिंसा धर्म का प्रचार कैसे होगा ? यदि डॉक्टर कहे कि मैं तो अपनी जात को नीरोगी रखने मे मानता हूँ, रोगियो का सम्पर्क मुझे नही चाहिये, तो उसे प्राप डॉक्टर कहेंगे क्या ?
एक अमेरिकन अग्रेजो के खिलाफ लडा और उसने अमेरिका को स्वतन्त्र किया। बाद मे फ्रेंच लोगो की तकलीफे दूर करने के लिये और उस प्रजा को स्वतन्त्र करने के लिये दह फाम पहुंचा। किसी ने उसे ललकारा और पूछा, "स्वदेश छोड़कर तू यहाँ कैसे प्राया ? तेरा स्वदेश तो अमेरिका है न ?” उसने जो जवाब दिया वह विश्व - साहित्य मे अमर हो गया है । उसने कहा, "अमेरिका मेरा स्वदेश था सही, परन्तु अब वहाँ पारतन्त्य नही रहा । और मुझे तो पारतन्त्र्य के खिलाफ लडना है । इसलिये जहाँ पारतन्त्र्य हो उस देश को ही अपना स्वदेश बनाऊँगा । ( My home is where liberty is not } ।
जैन धर्म मे मानने वाले को चाहे वह साधु हो या श्रावक - ऐसा ही कहना चाहिये कि 'जहाँ हिंसा फैल गयी है, निर्बल लोगो की दुखमय हालत है, निर्बल प्राणियो की हाय कोई सुनता नही, वही मुझे दौड जाना है । अपने सुख का विचार किये बिना, कोई भी जोखिम उठाकर, हिंसा-तत्त्व का विरोध करता रहूँगा । अहिंसा ही मानव धर्म है, यह बात मनुष्य जाति को समझाते रहना ही मेरा जीवन-धर्म है ।'
महात्मा गाँधी ने मनुष्य जाति को दिखा दिया कि अहिसा धर्म का पूरा पालन करके भी मनुष्य हिंसा के खिलाफ लड सकता है । श्रहिसा मे रहा हुआ क्षात्रतेज दुनिया के सामने प्रकट करना, यह था गांधीजी का युग-कार्य । मानवी सस्कृति मे गाँधीजी ने जो यह महत्त्व की वृद्धि की उस कार्य को श्रागे चलाने के लिये जो सारी दुनिया में हो आाय वे ही सच्चे हिंसाधर्मी है |