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________________ धर्म-भावना का सवाल मैने भगवान महावीर को ग्रास्तिक- शिरोमणी कहा है । जव सनातनी पण्डित भारतीय दर्शन के बारे में सोचते है तब ग्रास्तिक और नास्तिक ऐसे दर्शनो के दो भेद करते हैं । इस भेद मे आस्तिक-नास्तिक का अर्थ कुछ ग्रलग है । वेद का प्रमाण मानने वाले दर्शन आस्तिक, नही मानने वाले नास्तिक | ( नास्तिको वेदनिन्दक 1) इस हिसाब से निरीश्वरवादो साउथ ग्रास्तिक है, क्योकि वे वेद को प्रमाण मानते हे । मै जव भगवान् महावीर स्वामी को चास्तिक - शिरोमणि कहता हूँ नब आस्तिक शब्द का मेरा अर्थ कुछ अलग हैं । 'मनुष्य - हृदन पर जिसका विश्वास है, दुरात्मा भी किसी-न-किसी दिन सज्जन बनेगा और महात्मा भी बनेगा ऐसा जिसका विश्वाम हे वह हे ग्रास्तिक । क्रूर से क्रूर आदमी भी किसी-न-किसी दिन दया-धर्म के असर के नीचे आयेगा और दया, करुणा, ग्रनुकम्पा तथा अहिंसा का पालन करते हुये चाहे जितने कप्ट सहन करेगा, अपना प्राण देकर भी दूसरे का प्राण बचाएगा, इतना जिसका मनुष्य हृदय की उन्नतिगीलता पर विश्वास हे वह हे श्रास्तिक | न्यायकारी नृगस भी किसी-न-किसी दिन न्याय का तकाजा ममझ जाएगा और कबूल करेगा और न्याय - पालन करने के लिए अपना स्वार्थ छोड देगा, अपना सर्वस्व खोने के लिये तैयार होगा, ऐना जिसका विश्वास है वह आस्तिक है ।' मनुष्य हृदय पर ऐसे ही विश्वास के कारण महात्माजी सब लोगो के प्रति प्रेम, आदर, विश्वास और प्राशा से पेश आते थे। अगर किसी ने महात्माजी को दन दफा धोखा दिया तो भी ग्यारहनी दफा उस पर विश्वास रखने के लिए वे तैयार होते थे । उनका कहना था कि 'अगर ग्यारह दफा उम ग्रादमी मे सच्वी उपरति हुई और सदाचार के रास्ते पर ग्राने का उसने प्रारम्भ किया और मैंने मेरे अविश्वास के कारण उसके प्रयन्न मे मदद नही की तो फिर मेरी श्रास्तिकता कहाँ गई ? अगर ग्यारहवी दफा भी उम आदमी ने मुझे ठगा तो उमे उसका नुकसान होगा। मेरा तो सचमुच कुछ भी नुकसान नही होगा । सत्याग्रही को कभी हारना है ही नही ।'
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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