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महावीर का जीवन संदेश
का अध्ययन, विचार और प्रचार कर रहे है । उनके इस प्रचार में गहरा चिंतन और चैतन्य है। गाँधीजी के इस महान् अहिंसा प्रचार का काम राजनैतिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पैमाने पर प० जवाहरलाल नेहरू कर रहे है ।
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अन्तर्राष्ट्रीय मानवी सघर्ष टालने का महत्त्व जो लोग समझ गये हे और इस दिशा मे प्राणप्रण से प्रयत्न कर रहे है वे अधिकाश आहार मे मासा - हारी है, इतने पर से अगर हम उनसे घृणा करेंगे या अलिप्त रहेगे तो हमारा काम नही चलेगा । अहिंसा के सच्चे पुजारी भनुष्य-मास खाने वाले क्रव्याद। को भी दूर नही रखेगे । उनसे घृणा नही करेगे ।
( ऐसे लोग आज भी अफ्रिका मे कही कही पाये जाते है । कल तक उनका मनुष्य- मासाहार जाहिरा तौर पर चलता था । ) ऐसे लोगो के बीच जाकर अहिंसा का प्रचार करने की जो हिम्मत करेगा वही महावीर का शिष्योत्तम गिना जायेगा । ईसा मसीह के चन्द शिष्य अफ्रिका मे जाकर प्रेमधर्म का प्रसार कर रहे है । वे जानते है कि वहाँ अहिंसा का प्रात्यन्तिक प्रचार हो नही सकता, क्रमश आसान सीढी के जैसा ही वहाँ प्रचार होना चाहिये । ऐसे प्रचार के लिये लोकोत्तर वीर्य और धैर्य की आवश्यकता है । वीर्य और धैर्य अहिंसा के प्रधान लक्षण है । यह वान जैसी गाँधीजी ने समझाई वैसी ही अपने जमाने मे भगवान् महावीर ने भी समझाई थी ।
अहिंसा धर्म का प्रचार इस नये प्रस्थान के द्वारा ही होगा । रूढिग्रस्त वेजान प्रचार छोडकर जिन लोगो ने इस नये प्रस्थान को समझा है और उसको स्वीकार किया है, उन्ही को शतश प्रणाम । भविष्य उन्ही का है । भूतकाल की उपासना बहुत हुई । शास्त्रों की खदान मे खोद-खोदकर हिंसा निकालने की और संग्रहीत करने की प्रवृत्ति बहुत हुई । शास्त्र वचनो का दोहन भी बहुत हुआ । श्रव तो जीवन का चिनन और पुरुषार्थ का दोहन करने के दिन आ गये । हमारे सामाजिक जीवन मे उच्च-नीच भाव मूलक जो हिंसा फैल गई है, प्रतिपक्षी के प्रति उग्र द्वेप भाव रखना जो हमारे लिये स्वाभाविक बन गया है उसका इलाज हम करे तो वह ग्रहिमा-माधना का प्रारम्भ होगा।
अहिंसा का यह युगातर जो पहचानेगा उसी को ग्रहिमा का वीर्य और धैर्य प्राप्त होगा ।
१ अपेल १९६१