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महावीर का जीवन संदेश
क्षीणवीर्य नही हे, पुरुषार्थी है । मैं मानता हूँ कि इस जागृति का असर श्रावको
पर प्रथम होगा । साधुओ पर देरी मे होगा । साधु समाज चाहे जितना निस्पृह, अपरिग्रही या स्वल्प परिग्रही हो, जब तक वह निवृत्ति परायण है तब तक परावलम्बी है ही । परावलम्बी लोग रूढि को जल्दी-जल्दी तोड नही सकते । सम्भव है कि नये युग के अनुसार एक नया ही साधुवर्ग तैयार होगा और वह साधु सस्था मे क्रान्ति लायेगा । यह बात केवल जैन साधुग्रो की नही । सब धर्म के साधुग्रो की ऐसी ही बात है । मैं उनका मानस जानता हूँ । जब उनमे परिवर्तन होगा तब वे अपना तेज प्रगट कर सकेगे । धर्म- तेज के ऊपर समय-समय पर जो राख छा जाती हे उसे दूर करने की शक्ति साधु सस्था के पास नही होती। लेकिन जो लोग यह काम कर सकते है उन्ही के द्वारा नयी साधु सस्था स्थापित की जाती है, ( जो अपने जमाने का क्रान्ति- कार्य पूरा करने के बाद फिर से रूढिग्रस्त हो जाती है ) । शकराचार्य के जैसे सुधारक सन्यासी के अनुयायी प्राज रूढि धर्म के सब से बडे समर्थक हो गये है | इसमे आश्चर्य की कोई बात नही हे । सस्कृति का जीवनक्रम ही ऐसा होता है ।
२६-२-५७