________________
महावीर का जीवन सदेश
किमी भी धर्म के निष्ठावान अनुयायी ने आपकी बात मानी हे ? सर्व-धर्म समभाव की ही बात लीजिये । कोई कट्टर रोमन कैथोलिक, कट्टर मुसलमान तो क्या कोई कट्टर बौद्ध भी प्रापकी बात मानने को तैयार है ? ऐसा एक भी उदाहरण दिखाइये और बाद मे सर्वधर्म समभाव की अथवा सर्वधर्म ममभाव की बाते करे । कट्टर लोगो की धर्मनिष्ठा इसी में है कि वे अपना धर्म छोडकर और किसी धर्म को धर्म मानने के लिए तैयार नही ।
132
( स्मरण होता है कि जयपुर के एक सनातनी शास्त्री ने कहा कि सव धर्मो मे सनातन हिन्दू धर्म ही श्रेष्ठ है । इतने पर कई पुराने सनातन धर्माभिमानी शास्त्री विगड गये । उन्हें ने कहा, 'सनातन धर्म की श्रेष्ठता की बात करते अपने कबूल तो किया ही कि बाकी के भी धर्म है । अगर आपकी धर्मनिष्ठा सच्ची है तो ग्राप केवल सनातन धर्म को ही धर्म कहे । बाकी सब
धर्म है ।' यही वृत्ति कट्टर इस्लामियो की और कैथोलिक आदि इसाइयो की है । लेकिन हमने घर का ही उदाहरण लेना अधिक उपयोगी मान लिया 1)
सर्वधर्म समभाव या सर्वधर्म समन्वय तक पहुँचने के लिये इतनी तो हृदय की उदारता आवश्यक है ही कि हर एक धर्म की खूबियाँ हम पहचानें । धर्म के विधि-निषेधो के पीछे रही केवल धार्मिकता हो हम पुरस्कार करें और कालग्रस्त या गौण बातो की उपेक्षा करे ।
इस पर नये लोग कहते है कि कालग्रस्त धर्मों की झझट मे हम पडे ही क्यो ' सव धर्मो की बलाये दूर रखकर हम लोगो से क्यो न कहे, “भले श्रादमी, अपने-अपने हृदय की प्रेरणा को ही मान लो । सगठित धर्मों की बातें ही छोड़ दो ।"
वासना - परतन्त्र मनुष्य को बचाने के लिये धर्म पैदा हुया । उसी के पीछे वामनाएँ सगठित हुई और उन्होने मनुष्य को पथ परतन्त्र फिरकाभिमानी बनाया। आप धर्मों को गौण करके धार्मिकता को बढावा देना चाहते है । लेकिन धार्मिकता तो कब की निष्प्राण मनुष्य को धर्म-परतन्त्र बनाने की अपेक्षा स्वतन्त्र हो
1
हो चुकी है । परतन्त्र क्यो नही करते है ?
इन लोगो की बात सही है । लेकिन हम उन्हें भी श्रापको सच्चे और पक्के कितने अनुयायी मिले ?"
पूछते है "इस रास्ते श्राप जवाव देंगे कि