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धर्म के प्राार और नये धामिक प्रश्न
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इमनिये लोगों को मामाहानत्याग की सिफारिग करने के पहले में इस यात का पता लगा कि दुनिया में मनुष्य-मन्या कितनी है, इतने लोगों को पेट भर खाने के लिए अम कितना चाहिये । मैं यह भी देग कि प्राज कुल मिलाकर अनोपति स्तिन होती है। वह अगर अपर्याप्त है नो उमे घटाने के उपाय क्या-क्या है ? मैं यह भी पता लगा कि दुनिया मे पाहार के लिए पशु-पक्षी और मछनियो का कितना महार होता है । उनना ग्राहार बन्द कराने के लिए मैं उनको दनगे फोनगी चीज दे सकता है?
पशु-पक्षी प्रादि प्राणी मी नाहार की अपेक्षा गाते हैं। उनके याहार के लिए जितनी जमीन प्रावन्या, यह भी गुरे देगना पडेगा। पशु-पक्षियो, तो हल्या न करने में उसी मग कितनी बोगी, गया की हिमात्र लगाना पडेगा और अगर घरेन या पालतू पशुप्रो की गाया हद में ज्यादा नही बटने देनी है तो उसका भी इलाज मुजे गौचना नाहिये।
और, वही नियम अगर मनुष्य को लागू करना है तो प्रतिमायादी मनुप्य को लोक्सच्या रे मवान में दिलचम्पी रगनी ही होगी।
अहिंमा धर्म के मामने ग्राज मव में बडा मवान है युद का पोर अनुप्य-मनुप्य के बीच, वश-वश के बीच जा म्पर्धा नलनी है और प्रयत्नपूर्वक देप वढाया जाता है उसका ।
पचशील अहिमा धर्म का एक विलकुल प्राथमिक रूप है। उमको भी स्वीकार कगते फितनी कठिनाइयां उत्पन हो रही है। पश्चिम के विद्वान् जिम तरह अनेक मामाजिक, राष्ट्रीय, गजनीतिक, आर्थिक और मानसिक मवालो का मागोपाग अध्ययन करते है और अपनी मति के अनुसार व्यवहार उपाय बताते जाते है उसी तरह हमे भी करना होगा। यह काम तीन दिन के सेमिनार का नही है । अाज हम उमका प्रारम्भ कर सकते हैं।
अहिमा का तीसरा सवाल है-मानव के द्वारा होने वाले मानव के शोपण का।
__ सवाल यह है कि क्या अहिमावादी धनवान हो सकता है ? अथवा दूसरे शब्दो मे कहे तो क्या धनवान मनुष्य का जीवन अहिंसक है ? अपर