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महावीर का जीवन संदेश
उसके अनुयायी स्वयं ही सुधार का विरोध करे, यह एक प्राश्चर्यजनक घटना है । बुद्ध और महावीर ने जाति-भेद का विरोध किया था, अस्पृश्यता की अवगणना की थी, फिर भी उनके अनुयायी जाति के अभिमान से ओतप्रोत है और अस्पृश्यता को टिकाये रखने में धर्म समझते है ।
यह स्थिति देखकर ही एक मित्र ने कहा है : 'सत लोग धर्म चलाते है और रूढि - पूजक प्राचार्य उस धर्म का खून करतें है और बाद में उसकी 'ममी' (सुरक्षित शव ) की पूजा करते है ।' मैं नहीं मानता कि ऐसा होना ही चाहिये | इसलिये मेरी यह आशा है कि धर्माचार्य अपनी प्रतिष्ठा को नहीं परन्तु धर्म को जीवत रखने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देगे ।
सवत् १९६२ - सन् १९३५