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महावीर का जीवन सदेश
हम किसी भी तरह का परिवर्तन न करने का निश्चय कर ले, तव तो समाज मुर्दों की तरह सडने लगेगा ।
समाज मे आवश्यक परिवर्तन करने पर भी कोई परिवर्तन नही किये गये है ऐसा मानने- मनवाने मे प्रत्येक ममाज अपना श्रेय समझता आया है | न्यायाधीश प्रत्येक मुकदमे मे अपना निर्णय देते समय कानून मे परिवर्तन करते है, परन्तु उनका प्रयत्न यह दिखाने का होता है कि कानून मे कोई परिवर्तन नही किया गया है। इसे Legal fiction कहते है । समाज - व्यवस्था को धर्म शास्त्रो के हाथो मे सौपने के बाद उसमे कोई परिवर्तन नही किया गया, ऐसा दिखाना पडता है । इसके लिए भाष्यकार भाष्य रचते है श्रौर एक ही शास्त्र में श्रद्धा रखते हुए भी अलग-अलग भाष्यकारो के अर्थ के अनुसार लोगों के गुट बन जाते है । लोग शास्त्र वचन के प्रामाण्य की रक्षा करके अपने स्वीकृत भाष्यकार के वचन को अधिक महत्त्व देते है । सब देशो के आज तक के इतिहास को देखते हुए प्रगति का यह भी एक सार्वभौम नियम कहा जा सकता है ।
सामाजिक प्रगति का एक दूसरा महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त भी सर्वत्र देखा गया है । एक जमाना धर्म-व्यवस्था के बाह्य आकार की रक्षा करके उस आकार पूरे या भरे जाने वाले मसाले मे परिवर्तन करता है । पशु के मास का यज्ञ करने के वदले वह माप का ( उडद का) पशु बनाकर उसकी afe देता है और मानता है कि मास यज्ञ की रक्षा हो गई। इस प्रकार भीतर का मसाला पूरी तरह बदल जाने के बाद नये लोग तर्क करते है कि मुख्य चीज मसाला है, आकार तो गौण चीज है । इसलिये भीतर की चीज की रक्षा करके उसे कैसा भी आकार देने मे धर्मद्रोह नही होता, तत्त्व की रक्षा का ही वास्तविक महत्त्व है । इस प्रकार आकार के वदल जाने के बाद नये आकार को ही महत्त्व प्रदान किया जाता है । उडद के प्राटे के पशु बनाने के बदले गेहूँ के आटे के पिण्ड बनाये जाते हे और फिर उसमे नया मसाला स्वीकार करने की तैयारी हो जाती है । एक प्राचीन वचन है 'चलत्येकेन पादेन तिष्ठत्येकेन पण्डित' एक पैर को उठाकर आगे रखने के लिए दूसरा पैर अडिग और स्थिर रखना होता है । उठाया हुआ पैर आगे स्थिर हो जाय उसके बाद पीछे से अडिग पैर के टिकने की या उसे टिकाने की वारी याती है । इसी तरह समाज की प्रगति होती आई हे । जो लोग इस सिद्धान्तो को जान लेते है, उनकी समाज सेवा करने की शक्ति खूव वढ जाती है ।