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महावीर का अन्तस्तल
करने की कोई आवश्यकता नहीं है । कोमलाङ्गी स्त्रियाँ भी आवश्यकता होने पर विना अभ्यास के ही बड़े बड़े दुःसाहस के काम कर जाती हैं । आप तो महापुरुप हैं, जिस दिन जिस कार्य की आवश्यकता होगी अस दिन निष्णात की तरह आप वह काम कर दिखायँगे । इसलिय दया करके ऐसा अभ्यास न कीजिये जो दिनरात मेरे हृदय में शूल सा चुपता रहे । __ में कुछ देर चुपरहा फिर बोला अखिर तुम क्य चाहती हो ?
देवी-यही कि कुछ अभ्यास कम करदें आप खड़े होकर ध्यान लगाय गौरज चाहे तक लगाएँ तुझे आपात्त नहीं है । पर अचानक ही आप रूखा सृग्वा खाने लगते हैं, फल यह होता है जिसदिन जो रस आप नहीं लते वह में भा नहीं लेती, मेरी ही थाली में भोजन करने को प्रियदर्शना बैठती है, तब यह रूखा सूखा भोजन भरपेट नहीं खापाती । मेरे लिये नहीं किन्तु उस बच्ची के लिये तो इस अभ्याल में कमी कीजिये । यही बात शयन के बारेमें है, आप अभ्यास के लिये सोने में वस्त्र का उपयोग नहीं करते, मैंभी नहीं करती, प्रियदर्शना मेरे बिना दूसरी जगह सोती नहीं । आधीरात तक तो ठीक, पर उसके बाद ठण्ड बढ़ जाती है। में बच्ची का छाती ले चिपटा लेती हूं और उसकी पीठपर अपना अंचल फैला देती हूं, फिर भी वह ठण्ड से सिकुड़ जाती है । उसे नींद नहीं आती। यह बार बार पूछती
है कि मां, तुम कपड़ा क्यों नहीं ओढ़ती ? पर मैं उसे क्या सम ___ झाऊं? कैसे समझाऊं ? .. यह कहकर देवी चुप होगई । उनका सिर इंकदम झुक गया, थोड़ी देर में जमीन पर टपके हुए आंसू दिखाई दिये।
. मैंने देवी का झुका हुआ सिर दोनों हाथ से ऊपर की ओर किया, और कहा-मेरी साधना और तुम्हारी साधना की दिशाएँ भिन्न भिन्न हैं या बिलकुल उल्टी हैं फिर भी मैं