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महावीर का अन्तस्तल
उनसे कह देनेवाला हूँ कि मेरी तरफ से वे निश्चिन्त रहें, जब मैं अन्हें अपने ध्येय और कर्तव्य की संचाई समभा दूंगा उनकी अनुमति लेलूंगा तभी निष्क्रमण करूंगा । वे प्रसन्न रहें, अन्मुक्त रहें, अपने वसन्त में फीकापन न लायें ।
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४ - आंसुओं का द्वंद
२१ जिन्नी ९४२८ इतिहास संवत्-
सोचा था कि आज देवी को आश्वासन देदूंगा । अनसे आज काफी बातचीत भी हुई पर उन्हीं की तरफ से चर्चा कुछ ऐसी छिड़ी कि बात कहीं की कहीं जा पहुँची । वात उन्हीं ने छेड़ी, लेकिन एक पत्नी की तरह नहीं, किन्तु एक जिज्ञासु शिष्या की तरह । बोलीं-संसार में दो तरह के प्राणी क्या बनाये गये, एक नर दूसरा मादा ? क्या एक ही तरह का प्राणी बनने से काम न चलता ?
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प्रश्न सुनकर मैं देवी के मुँह की तरफ इकटक देखता रहा । उनकी आंखें नाच की ओर थीं इसलिये नजर से नजर न मिली | क्षणभर चुप रहकर मैंने कहा :
काम चलता कि नहीं इस बात को जाने दो, पर यह बताओ कि काम चलता तो क्या अच्छा होता ? -
-यह कहकर मैं मुसकराने लगा | उनने आंखें ऊपर की ओर कीं और जाकर फिर नीची करली । मुसकराहट सुन के भी मुँह पर खेलने लगी । उनने सिर नीचा किये हुए ही कहामैं क्या जानूँ, आप ही बताइये ।
मैंने कहा- तुम जानती हो पर अपने मन की बात मेरे मुँह से भी कहलाना चाहती हो !
मेरी बात सुनते ही उनकी मुसकराहट हँसी नगई और लज्जा का भार इतना बढ़ा कि उनका सिर झुककर मेरी
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