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________________ महावी, का निम्नल + आत्मकल्याण के लिये भी जगकल्याण करने की जान । जय ... चारों तरफ अनीति, अशान्ति और जड़ता फैली हो न मानी - नीति, शान्ति और बुद्धिमत्ता सफल नहीं हो सकती। देवी- यह ठीक है। आप अपने स्वजन और परिजनों को परखिये कि कहीं उनमें अनीति, अशान्ति और जरना ना नही है ? यदि हो तो आप उनकी चिकित्सा कीजिये । इमन आपको भी सन्तोष होगा, सुनका भी उद्धार होगा। , आह ! उनकी यह बात सनकर तामपन्नाला शि. देवी बाहर से विनीत और शान्त रहकर भी भीतर ही भीतर मेरे साथ बौद्रिक मल्लयुद्ध कररही हैं और नये नये पंच डाल रही हैं। इसमें उनका अपराध नहीं है। उनकी वेदना का मानभव करता हूं। पर कर क्या ? मुझे जो सम्यदर्शनमा उसकी सार्थकता इस छोटेनक्षत्र में चन करने में नहीं है कि सब की प्यास बुझाने में हैं। घगतल के भीतर सब जगाः प्रयाः वह रहे हैं पर ऊपर दुनिया प्यास से तहरा रही है.. मग काम कृप खोदकर भीतर छिपा जल निकालना है. और सर में जन पीन की राह बताना है या वह राह बनाना भी पान , जरा दूसरे ढंग से समझाने के लिय मन देवी का.- 7: कुत्ता जब कहीं बैठना चाहता है तब पंग से पकाया जा साफ कर लेता है और उननी सफाई सन्तुष्टहरगट जाना है, पर एक पादमी इतने में सन्तुष्ट नहीं होता कामावर सममता है कि मरी पूरी प्रोपही साफ हो । जो मर भी अधिक विकसित हैं वे यह सोचते है कि केवल सोपी से साफ होने से ही क्या होता है ? यहि सापडी के जानन ल मृत भग रहा तो उस झोपड़ी में बने बाजायगा ? जो इसने भी अधिक विकसित होते है वे सोचते हैं कि झोपी क आसपार
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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