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महावीर का अन्तस्तल
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१०३-निर्वाण - २८ धनी ११६७३ इ. सं. - राजगृह से विहार कर मैं अपाए। नगरी आया। पिछले . कुछ दिनोंसे प्रचार और प्रवचन की मात्रा बढ़ादी थी क्योंकि मुझे मालूम होने लगा था कि मेरा शरीरवास इस वर्ष समाप्त होजायगा । इसलिये जितना अधिक मला कर जाऊं उतना ही अच्छा ।
__आज राजा हस्तिपाल के समाभवनमें प्रहर भर रात जाने तक प्रवचन करता रहा। .
इन्द्रभूति गौतम को देवशर्मा को झुपदेश देने के लिये पासके गांव में भेजदिया है । सम्भव यही है कि गौतम के आने के पहिले ही मेरी विदा होजायगी । गौतम को इससे दुःख तो वहुत होगा पर अच्छा ही है। उसमें इससे आत्म निर्भरता भी आयगी।
.. सब लोगों को शयन करने की मैंने अनुमति दी है। आधी रात्रि वीत भी चुकी है। ऐसा मालूम होता है कि सूर्योदय होने के पहिले मेरा महाप्रस्थान होजायगा।
__याज मुझे पर्याप्त सन्तोप है । जर्जावन की अन्तिम रात्रि तक मैंने कार्य किया। इससे कहना चाहिये कि अर्हत को बुढ़ापा नहीं आता।
जिस क्रांति को लक्ष्य करके मैंने घर छोड़ा था उसमें वहुत कुछ सफलता मिली है। जगत में अहिंसा का-दया का, प्रचार पर्याप्त हुआ है, इससे लाखों प्राणियों की रक्षा हुई है, लाखों जीवन शुद्ध हुए हैं।
व्यापारी तो पूंजी के दूने होने को भी बढ़ा लाभ लम. झता है. फिर मैं तो हजारों गुणा होगया हूं।