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महावीर का अन्तस्तल
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जगत में जितनी जानकारी हैं सब को तत्वज्ञान नहीं कहते । अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहिये पर यह न भूलना चाहिये कि तत्वज्ञान के सिवाय अन्य बातों के ज्ञान में है कुछ भूल होजाय तो भी सम्यक्त्व में क्षति नहीं पहुँचती।
गौतम-तत्वज्ञान से क्या तात्पर्य हैं भन्ते ।
मैं-तत्व तो मैं तुम्हें बताचुका हूं कि तत्व सात हैं। मूल तत्व तो स्व और पर है। इसे आत्म और अनात्म भी कह सकते है। इसके बाद यह जानना होता है कि जीवनमें वे कोन कोन से विचार और आचार हैं जिनसे दुःख आता है यह आश्रव तत्व है । दुःस के बन्धन में आत्मा किस तरह बंधा रहता है यह बन्ध तत्व है। श्राश्रव के रोकने के उपाय को संवर कहते हैं। बन्धनों फो धीरे धीरे कम करने या हटाने को निर्जरा कहते हैं और बन्धनराहित अवस्था का नाम मोक्ष है। इसमें अनन्त सुखका ( श्रोत भीतर ले उमड़ने लगता है।
जो ज्ञान साक्षात् या परम्परा से इस तत्वज्ञान का निवार्य अंग बन जाता है, वह महत्वपूर्ण है, उसी पर सम्क्त्व या सत्य निर्भर है वाकी ज्ञान इतना महत्व नहीं रखता । वह सच हो तो ठीक ही है, न हो तो इससे सम्यक्त्व तत्वज्ञता आदि में घका नहीं लगता। अहंत तत्वों का प्रत्यक्षदर्शी और सर्वदर्शी होता है।
इन दिनों तुमने जो अनेक प्रश्न पूछे हैं जैसे विश्वरचना, ज्योतिर्मण्डलकी गति, अप्ण जल के झरने आदि उनकी जानकारी बुरी नहीं है पर यह ध्यान रखना कि वे तत्वज्ञान रूप नहीं हैं। उनकी जानकारी सच झुठ होने से मोक्षमार्ग के ज्ञानमें, तत्व. ज्ञता में अईतपनमें कोई बाधा नहीं आती।
गौतमने हाथ जोड़कर कहा-बहुत ही आवश्यक रहस्य बतलाया प्रभु आपने।