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महावीर का क्षन्तस्तल
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तुम क्या इन बातों लैकड़ों लोग अभी सामान पीछे चलते
मैं--छः वर्ष तक मेरे साथ रहकर से भी इनकार करते हो गोशालक ! ऐसे जीवित हैं जिनने व तुम्हें मेरे अनुचर के चलते देखा है ।
गोशालक- -भूल रहे हो काव्य, वह गोशालक तो मर
| चुका |
मैं- पर तुम्हारे कहने से संसार की आंखें धोखा नहीं खासकतीं ।
गोशालक - आंखें सिर्फ शरीर को देख सकती हैं काश्यप. आत्मा को नहीं । यह शरीर वही है जो तुम कहते हो, पर असके भीतर जो आत्मा है वह दूसरा ही है । मेरा नाम उदावी कुण्डियायन है । मोक्षगामी जीव को अपने अन्तिम भव में सात शरीर बदलना पड़ते हैं । मेग पहिला शरीर सुदायी कुण्डियायन था । राजगृह के मण्डित कुक्षि चैत्य में वह शरीर छोड़कर मैंने ऐणेयक के शरीर में प्रवेश किया। इसके बाद । अखंडपुर नगर के चन्द्रावतरण चैत्य में ऐणेयक का शरीर छोड़ कर मल्लराम के शरीर में प्रवेश किया । चस्पा नगरी में अंगमंदिर चैत्य में मल्लराम का शरीर छोड़कर माल्यमंडित के शरीर में प्रवेश किया। इसके बाद वाराणसी नगरी के काम महावन में माल्य मंडित का शरीर छोड़कर रोह के शरीर में प्रवेश किया । उसके बाद आलभिका नगरा के पत्रकालय चैत्य में रोह का शरीर छोड़कर भारद्वाज के शरीर में प्रवेश किया। इसके बाद वैशाली नगरी के कोण्डियायन चैत्य में भारद्वाज का शरीर छोड़कर अर्जुन के शरीर में प्रवेश किया। इसके बाद श्रावस्ती में हलाहला कुम्हारिन की भाण्डशाला में अर्जुन का शरीर हो. कर गोशालक के शरीर में प्रवेश किया। अब तुम जान गये हांग