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महावीर का अन्तस्तल
से नियतिवादी बना, आदि । वह एक गोशाला में पैदा हुआ था इसलिये उसका नाम गोशालक हुआ और मंखलि नामक एक मंत्र ( भिक्षुक) का पुत्र होने से मैखलिपुत्र कहलाता है । न वह सर्वज्ञ है न तीर्थकर ।
ये सब बातें जनता ने भी सुनी । ५ चन्नी ९४५७ ई. सं.
आज भिक्षा से लौटकर श्रमण आनन्द ने कहा कि गोशाल रास्ते में मिला था और मुझसे कहता था कि 'तेरे धर्माचार्य को बहुत लोभ और तृष्णा है। उसने काफी यश प्रतिष्ठा प्राप्त करली है फिर भी उसकी तृष्णा शान्त नहीं होती इसलिये जहां तहां मेरी निन्दा करता फिरता है। इसलिये तू जा और कहदे कि मैं आता हूं और उसे भस्म करके मिट्टी में मिलाता हूं । मेरी मन्त्रशक्ति का उसे पता नहीं है पर अब लग जायगा "
यह कहकर आनन्द चिन्तित होकर मेरी तरफ देखने लगा, फिर कहा कि क्या गोशालक में saat मंत्रशक्ति है कि वह किसी को नए करदे ?
मैंने कहा- हाँ आनन्द ! गोशालक में मंत्रशक्ति हैं और असके प्रभाव से साधारण मनुष्य मर भी सकता है पर अर्हन्त पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता । इसलिये तुम सब मुनियों से कहदो कि जब गोशालक यहां आवे तब उससे कोई न करे, तर्क वितर्क न करे, जो कुछ कहना सुनना होगा- मैं
कह सुन लुंगा ।
आनन्द ने यह समाचार सब मुनियों से कह दिया । थोड़ी देर बाद गोशाल अपने भिक्षुओं की सेना लेकर आगया और मुझसे थोड़ी दूर ठहर कर बोला
" तुम मेरी खूब निन्दा कर रहे हो काश्यप कि तुम्हारा शिष्य है, मंखलिपुत्र |
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