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________________ महावीर का अन्तस्तल ..' . बात को लेकर वह धर्मगुरु बन बैठा है। गौतम ने जब उसकी बात कही तब मैंने कहा-पोग्गल का कहना ठीक नहीं, उसे अधूरा ज्ञान है, उसे सारे देवलोक का पता ही नहीं। ___ यह बात आलाभिंका के कुछ नागरिकों ने भी सुनी और वे यह बात नगर में कहते गये । फैलते फैलते पोग्गल परिव्राजक के कान में भी यह बात पहुंची । मेरे व्यक्तित्व के प्रभाव के कारण केवल नगरवासी ही नहीं, स्वयं पोग्गल परिव्राजक भी शंकित हो उठा। व्यनित्व का प्रभाव भी वास्तव में बहुत काम करता है। वह चर्चा के लिये मेरे पास आया और उसके साथ खेकडो नागरिक भी आये । उसने मुझसे पूछा-भगवन, मुझे देवलोक दिखाई देता . है और अन्तिम देवलोक ब्रह्मलोक है, पर आप इसे अधूरा मानते है तो बताइये कि ब्रह्मलोक के आगे देवलोक कला है और उसमें क्या प्रमाण है ? मैंने पूछा-तुम देवलोक को कैसा देखते हो परिव्राजक ? पोगलं-वहां के सब देव खूब सुखी हैं, देवलोक आन: दमय है। . . मैं- क्या वहां इन्द्र है ? . पोग्गल-जी हां वहां इन्द्र है। मै-क्या इन्द्र की सेवा के लिये दास दासी के समान देव भी हैं। . पोग्गल - जी हां, वहां दासदासी के समान देव भी है। ... मैं-इन्द्र या उसके कुटुम्बियों की अपेक्षा साधारण प्रजा. जन के समान देवों की और दासदासियों की संख्या कितनी है ? . .:
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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