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महावीर का अन्तस्तल
में विहार करता हुआ सोलहवें चातुर्मास के लिये राजगृह नगर आया । यह नगर मेरे तीर्थ के प्रचार का अच्छा केन्द्र बनगया है। यहां धन्य और शालिभद्र ने दीक्षा ली। शालिभद्र के स्वाभिमान ने ही असे दीक्षित किया। वह नहीं चाहता था कि किसी के आगे झुकना पड़े, पर एक बार उसे राजासे मिलने के लिये महलसे नीचे उतरना पड़ा। इसका शालिभद्र के मनपर बड़ा प्रभाव पड़ा। वह किसी ऐसे पद की खोज में था जिले पाने पर राजाओं के सामने न झुकना पड़ । जब उसे पता लगा कि श्रमणों को राजा के सामने नहीं झुकना पड़ता तब वह श्रमण होगया।
समें सन्देह नहीं कि आत्मगौरवशाली व्यक्तियों को श्रामण्य पर्याप्त सुखप्रद है । अन्य इन्द्रियों का आनन्द श्रमणों को भले ही न मिले या कम मिले, पर यह मानसिक आनन्द तो पर्याप्त मिलता है । इसी निमित्त से शालिभद्र का उद्धार होगया।
७८-कालगणना २८ इंगा ९४४७ इ. स.
गौतम ने आज कालगणना सम्बन्धी प्रश्न पूछा । मैंने लौकिक अलौकिक सभी प्रकार की गणना बताई।
समय-काल का सब से सूक्ष्म अंश । यावलिका- असंख्यात समयों की। उच्छ्चास-बहुतसो भावलिसाओं का।
निश्वास- उच्छवास के बराबर समय । भ्वासोच्छ्वास (प्राण )-अच्छ्वास निश्वास मिलाकर।
स्तोक-सात प्राणों का।.. लव-सात स्तोकों का। मुहूर्त-७७ लवों का, या ३७३३ स्लोवालों का। .. यहोरात्र-तीस मुहर्त का
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