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महावीर का अन्तस्तल
.... ... मनुष्य साधु बने, और साधुता को बढ़ाने और टिकाने के लिये साधु संघ का अंग बने ।
गौतम-क्या ऐसा भी समय आसकता है भगवन् कि इस साधुसंस्था की आवश्यकता न रहे । या उसका पिलकुल ही दूसरा रूप हो।
मैं-आसकता है। आचार शास्त्र के विधान द्रव्य क्षेत्र काल भाव के अनुसार बनते हैं। जैसा द्रव्य क्षेत्र काल भाव होता है वैसे साधु संस्था के रूप होते हैं-जीवन शुद्ध और जगत्सुधार के कार्य की मुख्यता से साधुसंस्था की आवश्यकता सदा रहेगी, पर उसके रूप तो बदलते ही रहेंगे। द्रव्य क्षेत्र काल भाव को भुलाकर आज के ही रूप से सदा चिपटे रहना एकांत मिथ्यात्व होगा । और मिथ्यात्व के साथ स्वपर कल्याण नहीं हो सकता । असली वस्तु साधुता है साधुसंस्था नहीं। लाघसंस्था तो साधता का वस्त्र मात्र है। वस्त्र तो ऋतु के अनुसार बदला ही करते हैं । देशकाल के भेद से भी उनमें परि वर्तन होता ही है।
गौतम-आज तो एक बहुत बड़े धर्म रहस्य का ज्ञान हुआ भगवन ! साधुता और साधुसंस्था का विश्लेषण, और गृहस्थावस्था में जीवन विकास आदि की बहुत बाते जानने को मिली । अब में सोचता हूं कि आनन्द के अवधिज्ञान को अस्वी. कार करके मैंने सत्य का विरोध किया है । इसलिये मुझे आनन्द से क्षमायाचना करना चाहिये ।
मैं-करना तो चाहिये। गौतम-तो मैं अभी जाता है। मैं- कुछ ठहर कर भी जासकते हो। गौतम- आपने सिखाया है, भगवन कि मन का विकार