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महावीर का अन्तस्तल
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जिसका महत्व काफी है ।
यहां के प्रतिष्टित श्रीमान आनन्द ने मेरे पास श्रावक के बरत लिये हैं। आनन्द स्वयं भी विद्वान ओर ज्ञानी व्याक्त है । उसे अवधिज्ञान भी है जिसके द्वारा वह अमुक अंश में विश्वरचना का म.प जानता है।
आज जब इन्द्रभूति गौतम भिक्षा लेने नगरमें गये तब आनन्द से भी मिले, क्योंकि आनन्द कुछ दिनों से बीमार है इसलिये उसका कुशल समाचार लेना था। इसी समय कुछ धर्म ची भी छिड़ पड़ी। आर आनन्द ने इस प्रकरण में अपने अवधिज्ञान का उल्लेख किया । पर गौतम ने झुसकी बात का निषेध किया। आनन्द ने तीन बार वही नात कही, पर गौतम ने तीनोवार अलका निषेध किया । कोई ने किसी की बात न मानी।
. वहां से आने के बाद प्रतिदिन की तरह जब गौतम ने चर्या निवेदन किया उसमें यह बात भी निकलो, तब मुझे यह वात खटकी । और मुझे मालूम हुआ कि गाँतम ने गलती की है। गृहस्थ भी ऐसा दिव्यज्ञान पासकता है। गौतम ने निषेध कर सत्य का अपलाप तो किया ही है साथ ही संघ में भी वमनस्य के वीज बोये हैं । . .
मैंने यह बात गौतम से कही।
गौतम ने आश्चर्य से कहा-क्या गृहस्थ को दिव्यज्ञान होसकता है भगवन ।
मैं-गृहस्थ को दिव्यज्ञान होने में कठिनाई तो अवश्य है, पर असम्भव नहीं है । असली बात तो विवेक और समभाव है। गृहस्थ को पूर्ण समभावी होने में कुछ कठिनाई होने पर भी वह अंचे से ऊंचा समभावी, और दिव्यज्ञानी होसकता है । कृर्मापुत्र को तो गृहस्थ अवस्था में केवलज्ञान होगया था।
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