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महावीर का अन्तस्तल
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रहगई, वह मुझसे कुछ धार्मिक चची करना चाहती थी । अवसर पाकर उसने मुझसे कुछ प्रश्न किये ।
प्रश्न-जीवों की अधोगति क्यों होती है क्या वे भारी होजाते हैं ?
मैं-हिंसा झुठ चोरी कुशील और परिग्रह के पाप से जीव भारी होजाते हैं ?
जयन्ती-तो पुण्यसे भारी क्या नहीं होते ? क्या पुण्य में वजन नहीं होता?
. मैं--जन तो हर एक पुदगल में होता है। पर जैसे दृति (मशक) में हवा भरने से वह पानी में ऊपर तरती है, और मिट्टी पत्थर भरने से डूब जाती है, हालांकि वजन हवा में भी है
और मिट्टी पत्थर में भी है। असी प्रकार पुण्य से जीव ऊपर तैरते हैं और पाप से अधोगति में डूबते हैं।
जयन्ती-अब मैं समझ गई भगवन् ! अब दूसग प्रश्न हैकि कोई कोई जीव साधारण उपदेश से मोक्षमार्ग में लगजाते हैं "और कोई कोई बड़े से बड़े अलौकिक ज्ञानी के समझाने पर भी नहीं समझते. तो इसका कारण क्या है ? समझाने की कमी या जीवा की स्वाभाषिक अयोग्यता .. मैं-इसमें जीवों की स्वाभविक अयोग्यता ही कारण है। जैसे कोई कोई मूंग का दाना कितना ही उबाला जाय वह पकता नहीं, इसमें सुबालनेवाले की कोई कमी नहीं, मूंग के दाने में ही स्वाभाविक अयोग्यता है इसीप्रकार कोई कोई जीव मोक्ष प्राप्त करने की स्वाभाविक अयोग्यता रखते हैं कि वे कितने भी निमित्त मिलने पर मोक्षमार्ग में नहीं लगते । जबर्दस्ती यदि बाहर से लगा भी दिये जायें तो भी उनका मत नहीं बदलता। पेसे प्राणियों को अभव्य कहते हैं। जीवों की भव्यता और अभ