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म वीर का अन्तस्तल
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निश्चित है, पर उनका निश्चय विवेक से करना पड़ता है, अपने मन के परिणाम, तथा फलाफल का विचार करना पड़ता है। .. जसे कभी कोई चीज किसी को पथ्य और किसी को अपथ्य होजाती है इसलिये यह नहीं कह सकते कि पथ्य अपश्य अनिश्चित हैं उसी प्रकार कोई कार्य किसी को पुण्य और किसी को पाप होजाता है इसलिये पुण्य पाप अनिश्चित नहीं होजाते, विवेक से सदा सुनका निश्चय होता है। . .
मेतार्य-बड़ा अच्छा विश्लेषण किया प्रभु आपने । अब आप मुझे भी अपना शिष्य समझे। - इसके बाद प्रभास ने कहा-मुझे, मोक्षप्राप्ति के विषय में पेसा सन्देह है प्रभु, कि पुण्य से स्वर्ग मिलता है पाप से नरक मिलता है तब मोक्ष किससे मिलेगा ? - मैं-अंशुभ परिणति नरक का मार्ग है प्रभास, शुभ परि.
जति स्वर्ग का मार्ग है, किन्तु माक्ष के लिये शुद्ध परिणति चाहिये । शुभ परिणति में दूसरों की भलाई तो होती है पर उसमें मोह रहता है और किसी न किसी तरह की स्वार्थ वासना रहती है, शुद्धपरिणति में केवल विश्वहित की दृष्टि से कर्तव्यभावना रहतो है, निष्पक्षता रहती है इसलिये पीछे किसी तरह का दुष्परिणाम या क्लेश नहीं होता । शुभ और शुद्ध परिणति के कार्यों में विशेप.अन्तर नहीं दिखाई देता किन्तु उसके मूल में रहनेवाली आशा में द्यावापृथ्वी का अन्तर रहता है । शुभ परिणति से लालसाएँ. जागती हैं अन्त में उससे कष्ट भी होता है पर चही कार्य अगर शुद्ध परिणति से किया जाय तो वीतरागता के कारण कोई बुरी प्रतिक्रिया नहीं होती, उससे अनन्त शांति मिलती है।
. . . . . . , ... __... प्रभास-समझ गया प्रभु, में अच्छी तरह समझ गया !
स्वर्ग मोक्ष का भेद भी ध्यान में आगया। अब मैं निसन्देह हूं।