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नाहावार का अन्तस्तल
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थी। पर थोड़ी देर में उसीन धीरे धीरे कहना शुरु किया-जीवन म ज्ञाफी वैभव और सन्मान पाया, अन्त में सोचा कि पहिले जन्म की पूंजी समाप्त होजाय इसके पहिले ही अगले जन्म के लिये कुछ जोड़ लेना चाहिये । इसलिये मैं तापस होगया। मैं विनय और दान को सच से मुख्य धर्म समझता हूं | इसलिये मैं सभी को प्रणाम करता रहा हूं और जो भिक्षा में मिला है उसका पक हिस्सा खाता रहा है बाकी तीन हिस्से पथिकों जलचरों और पक्षियों को समर्पित करता रहा हूं। मेरे भिक्षापात्र में चार खंड है-एक मेरे लिये, और बाकी तीन इन तीन वर्षों के लिये । इसप्रकार नपस्या करके मने आजीवन अनशन ललिया है, अब जीवन का अंतिम समय आनेवाला है।
इतना बोलने से ही उसे ऐसी थकावट होगई कि वह हांपनेसा लगा । मेरी इच्छा नहीं थी कि मैं कुछ बातचीत करके असे और थकाऊं। पर असको मुखमुद्रा से ऐसा मालूम हुआ कि वह और चर्चा करना चाहता है और मुझ स कुछ सुनना चाहता है । कम से कम अपनी प्रशंसा तो अवश्य ।
मैंने कहा-इसमें सन्देह नहीं कि नम्रता और उदारता बहुत प्रशंसनीय धर्म है । यह ठीक है कि उसमें यथाशक्य अधिक से अधिक विवेक का उपयोग करना चाहिये पर विवेक का उपयोग तो तभी किया जाय जत्र मूल में वे गुण हों। आप में वे गुण हैं यह पर्याप्त असाधारण बात है।
यद्यपि मैने सम्यक्त्व का ध्यान रखते हुए काफी नपे तुल शब्दोम उसकी प्रशंसा की थी फिर भी उसे पयाप्त सन्तोष हुआ । वह बोला-मुझे विश्वास है कि इस जीवन में जितना बभव और अधिकार पाया था उससे असंख्यगुणा अगले जन्म में पाऊंगा । इस जीवन में मुझे यह घात खटकती रही कि मुझसे भी बड़े वैभववाल है, मुझसे बड़े आधिफारी लोग हैं, जिनकं आगे मुझं निष्प्रभ होना पड़ता है । इस