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महावीर का अन्तस्तल
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गये। चलना तो अशक्य हो ही गया पर मेरे पैर वाटु में फँस: कर रहगये । घड़ीभर उन लोगों ने अत्यन्त अपमान जनक उल्लं. उन किया।
फिर यह कहते हुए लौट गये कि मामाजी, अगर तुम्हारे पास लँगोटी भी होती तो वही लूटते, पर अब नंगे मामा का क्या लूटे ?
५८- तत्व टुंगी ६४४२. इ. सं.
हदभूमि में छः महीने तक विहार किया। वहां के लोग अभी काफी म्लेच्छ हैं फिर भी कुछ न कुछ असर हुआ ही। अनुभव भी मिले । यहां भिक्षा. की काफी कठिनाई रही क्योंकि जिस घर में जाता था उसमें ऐसा भोजन मिलना कठिन होता था जिसमें मांस न मिला हो। अगर कोई ऐसा भोजन मिला भी तो अस्वच्छता के कारण असे लेना ठीक नहीं मालूम हुआ । । इस प्रकार कहना चाहिये कि छः महीने तक एक प्रकार से अनशन ही हुआ। वहां से निकलकर जब एक गोकुल में पहुँचा तय एक गोपी के यहां शुद्ध आहार मिला । इसके बाद मैंने द्रुतगति से पर्याप्त विहार किया। श्वेताम्बी श्रावस्ती कौशाम्बी वाराणसी मिथिला आदि दूर दूर की नगरियों में भ्रमण करके इस विशाला नगरी में ग्यारहवां चातुर्मास किया है। इस भ्रमण में लोगों से जो चर्चाएँ हुई उनसे धर्मतत्वों के निर्णय करने में प्रेरणा मिली। आजकल वही कर रहा हूँ।
कल्याण की दृष्टि से मैंने सात बातो के विचार को मुख्यता दी हैं । और उनके नाम रखें हैं जीव, अजीव, आश्रव,
बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष। ... जीव-जो अनुभव करता है कि मैं हूं । चैतन्यमय, सुख