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महावीर का अन्तस्तल
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होना चाहिये । श्रम और मनोयोग से अज्ञान पर भी विजय प्राप्त की जासकती हैं ।
सब से महत्वपूर्ण अदर्शन परिपह है । संयम तप त्याग आदि का फल है आत्मशांति और विश्वशांति | पर इस फल का दर्शन हरएक को नहीं होता । अल्पज्ञानियों को सन्तोष देने के लिये ऐहिक या पारलौकिक भौतिक फलों का अल्लेख किया जाता है वे भी दिखाई नहीं देते, इस प्रकार के अदर्शन से लोग सन्मार्ग छोड़ देते हैं। अगर धर्म का मर्म समझ जायँ तो अदर्शन या अविश्वास के द्वारा होनेवाला पतन रुक जाय । अदर्शन परिवह पर विजय प्राप्त किये विना मनुष्य न तो मोक्षसुख पा सकता है, न जनसेवा के मार्ग में टिक सकता है, न प्रलोभनों के जाल से बच सकता है ।
परिपछे और भी हो सकती हैं पर इन बाईस परिपहों के निर्णय से इस विषय का आवश्यक ज्ञान होसकता है । ४८ - मंत्रतंत्र
२ चिंगा ९४४० इ. सं.
एक दिन मैंने सोचा था कि ईश्वर का सिंहासन तो खाली किया जासकता है पर देवताओं का जगत नहीं मिटाया . जासकता । मनुष्य इतना विकसित नहीं है कि पारलौकिक देवताओं के बिना वह धर्म पर स्थिर रह सके और लौकिक देवत्व से ही सन्तुष्ट होसके । आज एक ऐसी घटना हुई कि मुझे यह भी मानना पड़ा कि मंत्रतंत्र के बिना भी आज के जगत का काम नहीं चलसकता । मनुष्यमात्र के हृदय में जन्म से ही मंत्रतंत्र के ऐसे संस्कार डाल दिये जाते हैं कि अज्ञानरूप में भी मन इनसे प्रभावित होजाता है । मंत्रों के दुष्प्रभाव से बचाने के लिये मंत्रों का अस्वीकार काम न देगा किन्तु प्रतिस्वीकार काम देगा तब इसके साथ मंत्रों का स्वीकार हो ही जायगा ।
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