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________________ १८८ ] सहावार का अन्तस्तल जहां जायें वहां आदर सत्कार हो और चार जनों में अन्हें आगे वैठाया जाय या आगे किया जाय । योग्यता तथा सेवा के अनुसार ऐसा होता भी है और होना भी चाहिये । फिर भी सत्कार पुरस्कार की तीर लाल सा होना साधुता के पतन का मार्ग खुलना है ! जितने सत्कार पुरस्कार के योग्य हम नहीं हैं उतना सत्कार पुरस्कार ले लेना मोघजीवी बनना है और साधुता से भ्रष्ट होना है। यही कारण है कि श्वेताम्बी नगरी से मैं जल्दी चला आया था, क्योंकि वहां मेरा इतना अधिक सत्कार पुरस्कार होने लगा था जितने के में योग्य नहीं था, जिससे मेरी साधना में बाधा ही पड़नेवाली थी। सत्कार पुरस्कार पर विजय प्राप्त किये बिना साधना अक्षुण्ण नहीं रह सकती । बल्कि इससे धीरे धीरे सच्चा सत्कार पुरस्कार भी नष्ट होसकता है । इन सब कारणों से सत्कार पुरस्कार विजय करना आवश्यक है। १४ धनी ६४४० इ. सं. आज विचारते विचारते तीन परिषहे और ध्यान में आई । उनके नाम रक्खे प्रज्ञा अज्ञान और अदर्शन । विद्वत्ता का घमण्ड होता प्रज्ञा परिपह है इसका विजय करना आवश्यक है। क्योंकि विद्वत्ता के घमण्ड से मनुष्य का विकास रुक जाता है साथ ही उसके ज्ञान का लाभ जगत नहीं ले पाता । उसके ज्ञान का लाभ लेने से पहिले ही उसके मद का आघात मनुप्य को घायल कर देता है तब ज्ञान लाभ की पात्रता ही नष्ट होजाती है । इसलिये प्रज्ञा को नम्रता से पचालेना. आवश्यक है । यही प्रज्ञा परिपह का जय है। . प्रज्ञा से उल्टी अज्ञान परिपह है। विद्या बुद्धि की कमी से मनुष्य में एक प्रकार की दीनता आजाती है, इससे भी मनुष्य का विकास रुक जाता है, अथवा गुरुजनों के शब्दों से पीड़ित होकर अनसे घृणा होजाती है । यह मानसिक निर्वलता भी दूर
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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