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महावार का अन्तस्तल
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यही वात ठण्ड गर्मी के बारे में है । अभ्यास से बहुत कुछ सहने की आदत पड़जाती है । हां! शरीर को स्वस्थ रखने का तो ध्यान रखना ही चाहिये पर अधिकांश अवसरों पर होता है यह कि शरीर तो सहने को तैयार रहता है पर मन सहने को तैयार नहीं रहता। यह कमजोरी जाना चाहिये।
डांस मच्छर का कष्ट भी एक परिषह है. जिसे जीतना चाहिये । साधु को प्रायः एकान्त स्थानों में ही ठहरना पड़ता है ऐसे स्थान में डांस मच्छर कीड़े मकोड़ों का राज्य रहता है । इन म्लेच्छ देशों में तो मुझे प्रतिदिन इन कष्टों का सामना करना पड़ा है । अगर इसका सामना न कर पाता तो यहां एक दिन भी न ठहर पाता। इसलिये स्वपर कल्याण की दृष्टि से दंशमशक परिषह जीतना भी आवश्यक है ।
साधु को विहार तो करना ही पड़ता है इसके लिये झुसमें पैदल श्रमण करने की ताकत तो होना ही चाहिये । रथ तथा अन्य वाहनों का उपयोग करना आज कल उसके लिये झुचित नहीं है। क्योंकि इससे परिग्रह वढ़ेगा और पराधीनता पैदा होगी। हां ! नद नदी समुद्र आदि पार करने के लिये नौका का उपयोग करना पड़े तो बात दूसरी है । साधारणतः पैदल विहार ही व्यावहारिक मार्ग है इसलिये थकावट से घबराना न चाहिये । चर्या परिपह विजय करना चाहिये ।
इसी प्रकार शय्या परिपह जीतना भी आवश्यक है। साधुको तूल तल्प की आशा न करना चाहिये । मिट्टी के शरीर को मिट्टीपर सुलाने की आदत डलवाना चाहिये । तभी साधु सब जगह जाकर आनन्द से गुजर कर सकेगा और जगत को भी आनन्द का सन्देश देसकेगा।
आसन भी एक परिषह है ।चर्या में थकावट होती है तो आसन में भी एक तरह की थकावट या व्याकुलता होती है ।