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________________ महावीर का अन्तस्तल [ १८१ साधुता का पालन करना कठिन है । होसकता है कि इन कष्टों को जीतने का अवसर हरएक को न मिले, परन्तु अगर मिले तो इन्हें जीतने की शक्ति अवश्य होना चाहिये । वास्तव में इन्हें जीतने में शारीरिक शक्ति की इतनी आवश्यकता नहीं है जितनी नानसिक शक्ति की । मन अगर चलवान हो तो ये बाधाएँ या परिप सहज ही जीती जासकती हैं । मन अगर वलवान न हो, संयमी और तपस्वी न हो, तो शरीर में सहनशक्ति अधिक होने पर भी इन्हें जीता नहीं जासकता । परिहों को जीतने में शारीरिक असमर्थता का इतना विचार नहीं करना है जितना मानसिक असमर्थता ओर असयंम का । I भूख प्यास और ठण्ड गर्मी ये चार परिपहें तो स्पष्ट हैं । मैंने इनपर पर्याप्त विजय पाली है । उपवासों का तो मुझे काफी अभ्यास है और इससे मेरे आत्मगौरव की और संयम की काफी रक्षा हुई है । ऐसे अवसर आये हैं जब अगर मैं भिक्षा लेता तो बड़ा अपमानित होना पड़ता और श्रमणों के विषय में लोगों की हीन भावना होजाती । पर उस अवसर पर मेरे उपवासों ने उस दीनता से मुझे बचाया. इससे श्रमणों का गौरव बढ़ा जो भविष्य में सत्यप्रचार में बहुत सहायक होगा । 1 भूख पर विजय पाने के लिये सिर्फ अपवास ही काफी नहीं है, स्वाद विजय भी जरूरी है । जैसा भी भोजन मिल गया, या जितने परिमाण में मिलगया उतने से ही काम चला लेना और सन्तोष के साथ अपना काम करना भी आवश्यक है इससे मनुष्य प्रत्येक परिस्थिति में स्वपर कल्याण के कार्य में लगा रह सकता है । अगर अधिक भूखा रहने से पित्त प्रकुप्त होने का भय हो तो कम खाकर, या स्वादहीन वस्तु लेकर मनुष्य भूखपर विजय पासकता है । साधु को इसका अभ्यास तथा मनोबल होना ही चाहिये ।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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