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________________ महावीर का अन्तस्नल · सभ्यरीति के कारण गोशाल वरावर अपमान न होता, पर वे लोग इतना अवश्य कहते " आप अपने ध्यान में तल्लीन रहिये देवार्य, हमारे कार्य में अहंगा न डालिये " और मुझे चुप रहना पड़ता। इसलिये पहिले से ही चुप रहना ठीक है हां ! जब और जहां मेरा प्रभाव बढ़ा होगा, मेरे शब्दों को झेलने के लिये लोग तैयार होंगे, वहां अनेक प्रकार के नियन्त्रण लगाऊंगा तब यह श्रृंगार का प्रवाह भी नियन्त्रित होजायगा । . बीभत्स टोटके [ १४१ ३६ १० मम्मेशी ६४३६ . इतिहास संवत् आज प्रातःकाल ही श्रावस्ती आगया, पर रहा नगर के बाहर ही । कभी कभी नगर के बाहर ही नगर के ठीक ठीक समाचार मिलते हैं। जो लोग नगर के भीतर भय संकोच आदि के कारण सभ्यता का आवरण डाले रहते हैं वे भी नगर के बाहर आकर खुले होजाते हैं । और तभी अनकी, उनके नगर की सभ्यता का पता लगता है । साथ ही नगर के बाहर रहने में चिन्तन के लिये एकान्त भी मिलता है। इन सव विचारों से मैं बाहर ही रहा । गोशाल नगर देखने चल दिया । - मैं एक वृक्ष के नीचे खड़ा था, और वृक्ष की पीड़ की ओट में था। थोड़ी दूर पर कुछ स्त्रियाँ, जो शौच के लिये नगर के बाहर आई थीं, खड़ी खड़ी बात करने लगीं स्त्रियों की चर्चा का पहिला विषय होता है सन्तान । एक बोली-रात को श्रीभद्रा बहिन के बच्चा होनेवाला था, पता नहीं क्या हुआ ? दूसरी बोली- बेचारी के हरवार बच्चें सरे ही पैदा होते हैं। पांचवार हो चुके हैं, देखें अब की बार क्या होता है ? तीसरी बोली- पर अब की बार एक ज्योतिषी ने ऐसा टोटका बताया है कि फिर आगे कभी मरे बच्चे पैदा ही न हों ।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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