________________
महावीर का अन्तम्तल
[१३६
पर बिगड़ने पापों को क्यों नहाल पीटने को तैयार मारत हो
ने एक युवक का चूमा ले लिया तव गोशाल चिल्ला पड़ा-तुम लोगों को लज्जा नहीं आती कि अपने गुरुजनों के सामने ऐसी पशुता दिखा रही हो । मैं निर्भयता से संच बोलनेवाला आदमी हूं, मुझ पर बिगड़ने से तुम्हारे पाप न धुल जायेंगे, मुझे मारन की अपेक्षा अपने पापों को क्यों नहीं मारते? .
अब की बार युवक उसे पीटने को तैयार होगये ? पर चयस्कों ने उसे बचा लिया। कहा-इस बेचारे को क्यों मारते हो? इसे बकने दो! तुम लोग जोर जोर से वादित्र बजाओ, इसका चकवाद न सुन पड़ेगा।
. अन्तमें यही हुआ। गोशाल बीच बीचमें बड़बड़ाता रहा पर उन लोगों ने ध्यान ही नहीं दिया । सवेरे तक नाचगाकर वें लोग चले गये।
रातभर इसी बात पर विचार आते रहे कि इस तरह का रात्रि जागरण किस काम का ? रात्रि जागरण का अभ्यास हो यह अच्छी बात है, जिससे कभी किसी अवसर पर किसी रोगी की परिचर्या करना पड़े तो कर सकें. किसी संकट में रक्षा के लिये रातभर पहरा देना पड़े तो देसके, दिन में जहां शान्तिपूर्ण एकान्त न मिलता हो वहां रात्रि के शान्तिपूर्ण एकान्त में कुछ चिन्तन मनन कर सत्य का शोध करना हो तो कर सके । इन लोगों को इन कामों में से कुछ भी नहीं करना था तब यह सब किसलिये? देवपूजा के वहाने श्रृंगार का उन्माद चरितार्थ करना था इसीलिये इनने रात्रि नष्ट की।
पर प्रश्न ग्रह है कि श्रृंगार के इस प्रवाह को कैसे रोका जाय ? बिलकुल रोकना तो अशक्य मालुम होता है सम्भवतः उससे विष्फोट होगा धर्मस्थानों को छोड़कर अन्यत्र यह प्रवाह बहाया जायगा। वहां वह आर भी निरंकुश होगा। इसलिये उसे मर्यादित करना ही ठीक है।. .. ..