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महावीर का अन्तस्तल
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गोशाल को यह सहन न हुआ। वह बोला-ये कैसी निर्लज्ज स्त्रियाँ है जो इस तरह मद्यपान कर नाच करती हैं।
युवतियों के पति, जो कि यौवन के साथ मद्य से भी उन्मत्त थे, गोशाल की बात सुनकर विगडं पड़े । उनने कहा तो कुछ 'नहीं, पर गोशाल की गर्दन पकड़कर मन्दिर के बाहर कर दिया। शिशिर का प्रारम्भ था, पर्याप्त ठण्ड पड़ती थी। गोशाल कांप गया। यहां तक कि उसके कांपने का स्वर मन्दिर के भीतर सनाई पड़ने लगा। तब एक वयस्क व्यक्ति ने द्वार खोलकर उसे भीतर कर लिया । गोशाल चुपचाप एक तरफ बैठ गया । उनका नृत्यगान चलता रहा।
थोड़ी देर बाद नृत्य में एक युवति ने एक युवक की तरफ ऐसी विटत्वपूर्ण चंष्टा की कि गोशाल से चुप'न रहा गया और उसके मुंह से आवेश में निकल गया "धिकार है ऐसी वेश्याओं को"।
. अब की वार गोशाल को दो तीन धपे भी लगे और मन्दिर के बाहर निकाल दिया गया। थोड़ी देर में गोशाल की दंतवीणा का स्वर बहुत बदगया । वयस्क व्यक्तियों को फिर दया आई और गोशाल फिर भीतर ले लिया गया।
सम्भवतः गोशाल चुप ही रहना चाहता था । पर उसमें वचनगुप्ति नहीं थी। कभी कभी वचन को वश में रखने की भी आवश्यकता होती है। आवश्यकतानुसार मन वचन कार्य की प्रवृत्ति भले ही कोजाय पर हममें इतनी शक्ति तो होना ही चाहिये कि अपने मन . वचन और शरीर को अंकुश में रख सकें. अपने संकल्प के अनुसार इन्हें रोक सके। पर गोशाल में इन तीनों गुप्तियों की कमी थी। इसलिये अव की चार मंद्य के उन्माद में और · श्रृंगार के प्रवाह में जब एक युवति