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महावीर का अन्तस्तुल
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आरक्षक - हां, बाहरवालों की आनेकी मनाई है। इस राज्य के ऊपर पड़ौसी राज्य आक्रमण करनेवाले हैं । तुम लोग उनके गुप्तचर मालूम होते हो ।
गोशाल ने हँसी उड़ाते हुए कहा- अरे वाहरे अन्तर्यामी ! आरक्षक ने उपटकर कहा- हम तुम्हारी सारी हँसी ठिकाने लगा देंगे । बताओ तुम कौन हो ?
आरक्षकों का कठोर स्वर सुनकर गोशाल को भी क्रोध आगया । यह बोला जाओ ! नहीं बताते ।
आरक्षक ने कहा- अच्छा, देखता हूं कैसे नहीं बताते।
यह कहकर सुन लोगों ने मुझे और गोशाल को रस्सी से बाँधा और छाती के पास एक लम्बासा रस्सा बाँधकर कुए में बड़े की तरह लटका दिया। धीरे धीरे पानी में ले गये । गोशाल चिल्लाने लगा, उसकी आवाज से वहां कुछ लोग इकट्ठे होगये | आरक्षक रस्सा ढीला करके हमें दुबाते थे और फिर खींचकर ऊपर उठाते थे । और हर बार पूछते थे कि बताओ तुम कौन हो ?
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दस बारह बार उनने ऐसा किया । इतने में मैंने ऊपर बहुत लोगों की आवाज सुनी, बहुत से लोग आरक्षकों को उलहना देने लगे । जनता के विरोध के भय से आरक्षकों ने हमें कुप में से निकाला इस घोर संकट के समय भी मेरे चेहरे पर मुसकराहट थी । मानों एक तमाशा था. जो होगया। भीड़ में से दो परिवाजिकाओं ने मुझे पहिचान लिया। वे कुछ रोप में आकर आरक्षकों से बोली तुम लोगों ने यह क्या दुष्ट कार्य किया ? ये तो कुंडलपुर के राजकुमार और परम त्यागी वर्द्धमान कुमार हैं जो बड़े सिद्ध पुरुष हैं। जिनने हमारे अस्थिक गांव के शूलपाणि यक्ष को जीतकर भगा दिया था । तुम लोगों ने ऐसे महात्मा को सताकर अपना सर्वनाश कर लिया है ।